ऋग्वेद 1.25.1

यच्चिद्धि ते विशो यथा प्र देव वरुण व्रतम्। मिनीमसि द्यविद्यवि॥1॥

पदपाठ — देवनागरी
यत्। चि॒त्। हि। ते॒। विशः॑। य॒था॒। प्र। दे॒व॒। व॒रु॒ण॒। व्र॒तम्। मि॒नी॒मसि॑। द्यवि॑ऽद्यवि॥ 1.25.1

PADAPAATH — ROMAN
yat | cit | hi | te | viśaḥ | yathā | pra | deva | varuṇa | vratam | minīmasi | dyavi-dyavi

देवता —        वरुणः;       छन्द        गायत्री;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि         शुनःशेप आजीगर्तिः 

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे (देव) सुख देने (वरुण) उत्तमों में उत्तम जगदीश्वर ! आप (यथा) जैसे अज्ञान से किसीराजा वा मनुष्य के (विशः) प्रजा वा सन्तान आदि (द्यविद्यवि) प्रतिदिन अपराध करते हैंकिन्हीं कामों को नष्ट कर देते हैं वह उनपर न्याययुक्त दण्ड और करुणा करता है वैसेही हम लोग (ते) आपका (यत्) जो (व्रतम्) सत्य आचरण आदि नियम हैं (हि) उनकोकदाचित् (प्रमिणीमसि) अज्ञानपन से छोड़ देते हैं उसका यथायोग्य न्याय (चित्) औरहमारे लिये करुणा करते हैं॥1॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में उपमालंकार है। हे भगवन् जगदीश्वर ! जैसे पिता आदि विद्वान् और राजाछोटे-छोटे अल्पबुद्धि उन्मत्त बालकों पर करुणा न्याय और शिक्षा करते हैं वैसे ही आपभी प्रतिदिन हमारे न्याय करुणा और शिक्षा करनेवाले हों॥1॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
1. जिस तरह संसार के मनुष्य वरुणदेव के व्रतानुष्ठान में भ्रम करते हैं, उसी तरह हम लोग भी दिन-दिन प्रमाद करते हैं।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
1. WHATEVER law of thine, O God, O Varurna, as we are men, Day after day we violate. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
WHATEVER law of yours, God, Varurna, as we are men, Day after day we violate. [1]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
1. Inasmuch as all people commit errors, so do we, divine Varuna, daily disfigure your worship by imperfections.

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