ऋग्वेद 1.24.4

यश्चिद्धि त इत्था भगः शशमानः पुरा निदः। अद्वेषो हस्तयोर्दधे॥4॥

पदपाठ — देवनागरी
यः। चि॒त्। हि। ते॒। इ॒त्था। भगः॑। श॒श॒मा॒नः। पु॒रा। नि॒दः। अ॒द्वे॒षः। हस्त॑योः। द॒धे॥ 1.24.4

PADAPAATH — ROMAN
yaḥ | cit | hi | te | itthā | bhagaḥ | śaśamānaḥ | purā | nidaḥ | adveṣaḥ | hastayoḥ | dadhe

देवता —        सविता भगो वा ;       छन्द        गायत्री;      
स्वर        षड्जः;       ऋषि         शुनःशेप आजीगर्तिः  स कृत्रिमो वैश्वामित्रो देवरातः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे जीव ! जैसे (अद्वेषः) सबसे मित्रता पूर्वक वर्तनेवाला द्वेषादि दोषरहित मैं ईश्वर (इत्था)इस प्रकार सुख के लिये (यः) जो (शशमानः) स्तुति (भगः) और स्वीकार करने योग्य धन है उसको (ते) तेरे धर्मात्मा के लिये (हि) निश्चय करके (हस्तयोः) हाथों में आमले का फल वैसे धर्म के साथ प्रशंसनीय धन को (दधे) धारण करता हूँ और जो (निदः) सबकी निन्दा करनेहारा है उसके लिये उस धन समूह का विनाश कर देता हूँ वैसे तुम लोग भी किया करो॥4॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
यहाँ वाचकलुप्तोपमालंकार है। जैसे मैं ईश्वर सबके निन्दक मनुष्य के लिये दुःख और स्तुति करनेवाले के लिये सुख देता हूँ वैसे तुम भी सदा किया करो॥4॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
4, प्रशंसित, निन्दा-शून्य, द्वेष-रहित और सम्भोग-योग्य धन को तुम दोनों हाथों में धारण किये हुए हो।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
4. Wealth, highly lauded ere reproach hath fallen on it, which is laid, Free from all hatred, in thy hands 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Wealth, highly lauded ere reproach has fallen on it, which is laid, Free from all hatred, in your hands [4]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
4. That wealth which has been retained in your hands, and is enatled to commendation, as exempt from envy or reproach.

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