ऋग्वेद 1.24.14

अव ते हेळो वरुण नमोभिरव यज्ञेभिरीमहे हविर्भिः। क्षयन्नस्मभ्यमसुर प्रचेता राजन्नेनांसि शिश्रथः कृतानि॥14॥

पदपाठ — देवनागरी
अव॑। ते॒। हेळः॑। व॒रु॒ण॒। नमः॑ऽभिः। अव॑। य॒ज्ञेभिः॑। ई॒म॒हे॒। ह॒विःऽभिः॑। क्षय॑न्। अ॒स्मभ्य॑म्। अ॒सु॒र॒। प्र॒चे॒त॒ इति॑ प्रऽचेतः। राज॑न्। एनां॑सि। शि॒श्र॒थः॒। कृ॒तानि॑॥ 1.24.14

PADAPAATH — ROMAN
ava | te | heḷaḥ | varuṇa | namaḥ-bhiḥ | ava | yajñebhiḥ | īmahe | haviḥ-bhiḥ | kṣayan | asmabhyam | asura | pracetaitipra-cetaḥ | rājan | enāṃsi | śiśrathaḥ | kṛtāni

देवता —        वरुणः;       छन्द        त्रिष्टुप् ;       स्वर        धैवतः;      
ऋषि         शुनःशेप आजीगर्तिः  स कृत्रिमो वैश्वामित्रो देवरातः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे (राजन्) प्रकाशमान (प्रचेतः) अत्युत्तम विज्ञान् (असुर) प्राणों में रमने (वरुण)अत्यन्त प्रशंसनीय (अस्मभ्यम्) हमको विज्ञान देनेहारे भगवन् जगदीश्वर ! जिसलिये हम लोगों के (कृतानि) किये हुए (एनांसि) पापों को (क्षयन्) विनाश करते हुए(अवशिश्रयः) विज्ञान आदि दान से उनके फलों को शिथिल अच्छे प्रकार करते हैं इसलिये हम लोग (नमोभिः) नमस्कार वा (यज्ञेभिः) कर्म उपासना और ज्ञान और(हविर्भिः) होम करने योग्य अच्छे-अच्छे पदार्थों से (ते) आपका (हेडः) निरादर (अव)न कभी (ईमहे) करना जानते और मुख्य प्राण की भी विद्या को चाहते हैं॥14॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मनुष्यों को उचित है कि जैसे परमेश्वर के रचे हुए संसार में पदार्थ करके प्रकट किये हुए बोध से किये पाप कर्मों को फलों से शिथिल कर देवें वैसा अनुष्ठान करें। जैसे अज्ञानी पुरुष को पाप फल दुःखी करते हैं वैसे ज्ञानी पुरुष को दुःख नहीं दे सकते॥14॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
14. वरुण! नमस्कार करके हम तुम्हारे क्रोध को दूर करते हैं और यज्ञ में हव्य देकर भी तुम्हारा क्रोध दूर करते हैं। हे असुर! प्रचेतः! राजन्! हमारे लिए इस यज्ञ में निवास करके हमारे किये हुए पाप को शिथिल करो।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
14. With bending down, oblations, sacrifices, O Varuna, we deprecate thine anger: Wise Asura, thou King of wide dominion, loosen the bonds of sins by us committed. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
With bending down, oblations, sacrifices, Varuna, we deprecate your anger: Wise Asura, you King of wide dominion, loosen the bonds of sins by us committed. [14]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
14. Varuna we deprecate your wrath with prostrations, with sacrifices, with oblations: averter of misfortune, wise and illustrious, be present amongst us, and mitigate the evils we have committed.
Averter of Misfortune– The text has, asura, which is interpreted, anista-ksepana-sila, accustomed to cast off what is undesired; from the root as, to throw: it is an unusual sense of the word, but it would scarcely be decourous to call Varuna an asura.

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