ऋग्वेद 1.23.5
ऋतेन यावृतावृधावृतस्य ज्योतिषस्पती। ता मित्रावरुणा हुवे॥5॥
पदपाठ — देवनागरी
ऋ॒तेन॑। यौ। ऋ॒त॒ऽवृधौ॑। ऋ॒तस्य॑। ज्योति॑षः। पती॒ इति॑। ता। मि॒त्रावरु॑णा। हु॒वे॒॥ 1.23.5
PADAPAATH — ROMAN
ṛtena | yau | ṛta-vṛdhau | ṛtasya | jyotiṣaḥ | patī iti | tā | mitrāvaruṇā
| huve
देवता — मित्रावरुणौ ; छन्द — गायत्री;
स्वर — षड्जः; ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मैं (यौ) जो (ॠतेन) परमेश्वर ने उत्पन्न करके धारण किये हुए (ॠतावृधौ) जलको बढ़ाने और (ॠतस्य) यथार्थ स्वरूप (ज्योतिषः) प्रकाश के (पती) पालन करनेवाले (मित्रावरुणौ) सूर्य और वायु हैं उनको (हुवे) ग्रहण करता हूँ॥5॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
न सूर्य और वायु के बिना जल और ज्योति अर्थात् प्रकाश की योग्यता न ईश्वर के उत्पादन किये बिना सूर्य्य और वायु की उत्पत्ति का सम्भव और न इनके बिना मनुष्यों के व्यवहारों की सिद्धि हो सकती है॥5॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
5. जो मित्र और वरुण सत्य के द्वारा यज्ञ की वृद्धि और यज्ञ के प्रकाश का पालन करते हैं, उन लोगों का मैं आह्वान करता है।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
5. Those who by Law uphold the Law, Lords of the shining light of Law,
Mitra I call, and Varuna.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
Those who by Law uphold the Law, lords of the shining light of Law, Mitra I call, and Varuna. [5]
H H Wilson (On the basis of Sayana)
5. I invoke Mitra and Varuna who with true speech, are the encouragers of pious acts, and are lords of true light. Rtasya jyoasas-paa. Mitra and Varuna are included among the Adityas, or monthly suns, in the Vedic enumeraaon of the eight sons of Adia. Srutyantare castau putraso aditeh ityupakramya mitrasca varunasca ityadikam amnatam.1