ऋग्वेद 1.23.23
आपो अद्यान्वचारिषं रसेन समगस्महि। पयस्वानग्न आ गहि तं मा सं सृज वर्चसा॥23॥
पदपाठ — देवनागरी
आपः॑। अ॒द्य। अनु॑। अ॒चा॒रि॒ष॒म्। रसे॑न। सम्। अ॒ग॒स्म॒हि॒। पय॑स्वान्। अ॒ग्ने॒। आ। ग॒हि॒। तम्। मा॒। सम्। सृ॒ज॒। वर्च॑सा॥ 1.23.23
PADAPAATH — ROMAN
āpaḥ | adya | anu | acāriṣam | rasena | sam | agasmahi | payasvān | agne |
ā | gahi | tam | mā | sam | sṛja | varcasā
देवता — अग्निः ; छन्द — अनुष्टुप् ;
स्वर — गान्धारः ; ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हम लोग जो (रसेन) स्वाभाविक रसगुण संयुक्त (आपः) जल हैं उनको (समगस्महि) अच्छे प्रकार प्राप्त होते हैं जिनसे मैं (पयस्वान्) रसयुक्त शरीरवाला होकर जो कुछ (अन्वचारिषम्) विद्वानों के अनुचरण अर्थात् अनुकूल उत्तम काम करके उसको प्राप्त होता और जो यह (अग्ने) भौतिक अग्नि (मा) मुझको इस जन्म और जन्मान्तर अर्थात् एक जन्म से दूसरे जन्म में (आ गहि) प्राप्त होता है अर्थात् वही पिछले जन्म में (तम्) उसी कर्मों के नियम से पालनेवाले (मा) मुझे (अद्य) आज वर्त्तमान भी (वर्चसा) दीप्ति (संसृज) सम्बन्ध कराता है उन और उसको युक्ति से सेवन करना चाहिये॥23॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
सब प्राणियों को पिछले जन्म में किये हुए पुण्य वा पाप का फल वायु जल और अग्नि आदि पदार्थों के द्वारा इस जन्म वा अगले जन्म में प्राप्त होता ही है॥23॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
23. आज स्नान के लिए जल में पैठता हूँ, जल के सार से सम्मिलित हुआ हूँ। हे जल-स्थित अग्नि! आओ। मुझे तेज से परिपूर्ण करो।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
23. The Waters I this day have sought, and to their moisture have we come:
O Agni, rich in milk, come thou, and with thy splendour cover me.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
The Waters I this day have sought, and to their moisture have we come:
Agni, rich in milk, come you, and with your splendour cover me. [23]
H H Wilson (On the basis of
Sayana)
23. I have this day entered into the waters: we have mingled with their
essence: Agni, abiding in the waters, approach, and fill me, thus
(bathed), with vigour. Rasena samagasmahi; that is, the Scholiast says we
have become associated with the essence of water, jalasarena sangatah
smah.