ऋग्वेद 1.23.11

जयतामिव तन्यतुर्मरुतामेति धृष्णुया। यच्छुभं याथना नरः॥11॥

पदपाठ — देवनागरी
जय॑ताम्ऽइव। त॒न्य॒तुः। म॒रुता॑म्। ए॒ति॒। धृ॒ष्णु॒ऽया। यत्। शुभ॑म्। या॒थन॑। न॒रः॒॥ 1.23.11

PADAPAATH — ROMAN
jayatām-iva | tanyatuḥ | marutām | eti | dhṛṣṇu-yā | yat | śubham | yāthana | naraḥ

देवता —        विश्वेदेवा:;       छन्द        गायत्री;      
स्वर        षड्जः;       ऋषि        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे (नरः) धर्मयुक्त शिल्पविद्या के व्यवहारों को प्राप्त करनेवाले मनुष्यो ! आप लोग भी (जयतामिव) जैसे विजय करनेवाले योद्धाओं के सहाय से राजा विजय को प्राप्त होता और जैसे (मरुताम्) पवनों के संग से (धृष्णुया) दृढ़ता आदि गुणयुक्त (तन्यतुः) अपने वेग को अतिशीघ्र विस्तार करनेवाली बिजुली मेघ को जीतती है वैसे (यत्) जितना (शुभम्) कल्याण युक्त सुख है उस सबको प्राप्त हूजिये॥11॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में उपमालंकार है। हे मनुष्यो ! जैसे विद्वान् लोग शूरवीरों को सेना से शत्रुओं के विजय वा जैसे पवनों के घिसने से बिजुली के पत्र को चलाकर दूरस्थ देशों को जा वा आग्नेयादि अस्त्रों की सिद्धि को करके सुखों को प्राप्त होते हैं वैसे ही तुमको भी विज्ञान वा पुरुषार्थ करके इनसे व्यावहारिक और पारमार्थिक सुखों को निरन्तर बढ़ाना चाहिये॥11॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
11. जिस समय मरुतलोग शोभन यज्ञ को प्राप्त होते हैं उस समय विजयी लोगों के नाद की तरह उनका, दर्प के साथ, निनाद होता है।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
11. Fierce comes the Maruts’ thundering voice, like that of conquerors, when ye go Forward to victory, O Men. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Fierce comes the Maruts’ thundering voice, like that of conquerors, when you go Forward to victory, Men. [11]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
11. Whenever, leaders (of men), you accept an auspicious (offering), then the shout of the Maruts spreads with exultaaon, like (that) of conquerors.

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