ऋग्वेद 1.22.9

अग्ने पत्नीरिहा वह देवानामुशतीरुप। त्वष्टारं सोमपीतये॥9॥

पदपाठ — देवनागरी
अग्ने॑। पत्नीः॑। इ॒ह। आ। व॒ह॒। दे॒वाना॑म्। उ॒श॒तीः। उप॑। त्वष्टा॑रम्। सोम॑ऽपीतये॥ 1.22.9

PADAPAATH — ROMAN
agne | patnīḥ | iha | ā | vaha | devānām | uśatīḥ | upa | tvaṣṭāram | soma-pītaye

देवता —        अग्निः ;       छन्द        गायत्री;      
स्वर        षड्जः;       ऋषि        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(अग्ने) जो यह भौतिक अग्नि (सोमपीतये) जिस व्यवहार में सोम आदि पदार्थों का ग्रहण होता है उसके लिये (देवानाम्) इकत्तीस जो कि पृथिवी आदि लोक हैं उनकी (उशतीः) अपने-अपने आधार के गुणों को प्रकाश करनेवाला (पत्नीः) स्त्रीवत् वर्त्तमान अदिति आदि पत्नी और (त्वष्टारम्) छेदन करनेवाले सूर्य्य वा कारीगर को (उपावह) अपने सामने प्राप्त करता है उसका प्रयोग ठीक-ठीक करें॥9॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
विद्वानों को उचित है कि जो बिजुली प्रसिद्ध और सूर्य्यरूप से तीन प्रकार का भौतिक अग्नि शिल्पविद्या की सिद्धि के लिये पृथिवी आदि पदार्थों के सामर्थ्य प्रकाश करने में मुख्य हेतु है उसी का स्वीकार करें और यह इस शिल्पविद्या रूपी यज्ञ में पृथिवी आदि पदार्थों के सामर्थ्य का पत्नी नाम विधान किया है उसको जानें॥9॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
9. अग्निदेव! देवों की अभिलाषा करनेवाली पत्नियों को इस यज्ञ में ले आओ। सोमपान करने के लिए त्वष्टा को पास ले आओ।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
9. O Agni, hither bring to us the willing Spouses of the Gods, And Tvastar, to the Soma draught. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Agni, here bring to us the willing Spouses of the gods, And Tvastar, to the soma draught. [9]

H H Wilson (On the basis of Sayana)
9. Agni, bring hither the loving wives of the gods, and Tvasta, to drink the Soma juice.

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