ऋग्वेद 1.22.6
अपां नपातमवसे सवितारमुप स्तुहि। तस्य व्रतान्युश्मसि॥6॥
पदपाठ — देवनागरी
अ॒पाम्। नपा॑तम्। अव॑से। स॒वि॒तार॑म्। उप॑। स्तु॒हि॒। तस्य॑। व्र॒तानि॑। उ॒श्म॒सि॒॥ 1.22.6
PADAPAATH — ROMAN
apām | napātam | avase | savitāram | upa | stuhi | tasya | vratāni | uśmasi
देवता — सविता ; छन्द — निचृद्गायत्री ;
स्वर — षड्जः; ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे धार्मिक विद्वान् मनुष्य ! जैसे मैं (अवसे) रक्षा आदि के लिये (अपाम्) जो सब पदार्थों को व्याप्त होने अन्त आदि पदार्थों के वर्ताने तथा (नपातम्) अविनाशी और (सवितारम्) सकल ऐश्वर्य्य के देनेवाले परमेश्वर की स्तुति करता हूँ, वैसे तू भी उसकी (उपस्तुहि) निरन्तर प्रशंसा कर। हे मनुष्यो ! जैसे हम लोग जिसके (व्रतानि) निरन्तर धर्मयुक्त कर्मों को (उश्मसि) प्राप्त होने की कामना करते हैं, वैसे (तस्य) उसके गुण कर्म्म और स्वभाव को प्राप्त होने की कामना तुम भी करो॥6॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जैसे विद्वान् मनुष्य परमेश्वर की स्तुति करके उसकी आज्ञा का आचरण करता है, वैसे तुम लोगों को भी उचित है कि उस परमेश्वर के रचे हुए संसार में अनेक प्रकार के उपकार ग्रहण करो॥6॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
6. अपने रक्षण के लिए जल को सुखा देनेवाले सूर्य की स्तुति हो। हम सूर्य के लिए यज्ञ करना चाहते हैं।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
6. That he may send us succour, praise the Waters’ Offspring Savitar: Fain
are we for his holy ways.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
That he may send us succour, praise the Waters’ Offspring Savitar: Fain are
we for his holy ways. [6]
H H Wilson (On the basis of Sayana)
6. Glorify Savita, who is no friend to water, or our protection: we desire to celebrate his worship.
Apam-napat might be thought to mean, son of the waters, as napat is often used in the Veda in that sense; but the Sun is rather the parent than the progeny of the waters; as Adityat jayate vrstih4- rain is born from the sun. Napat is here taken in its literal purport, who does not cherish (na palayati), but dries them up by his heat, santapena sosakah.