ऋग्वेद 1.21.6

तेन सत्येन जागृतमधि प्रचेतुने पदे। इन्द्राग्नी शर्म यच्छतम्॥6॥

पदपाठ — देवनागरी
तेन॑। स॒त्येन॑। जा॒गृ॒त॒म्। अधि॑। प्र॒ऽचे॒तुने॑। प॒दे। इन्द्रा॑ग्नी॒ इति॑। शर्म॑। य॒च्छ॒त॒म्॥ 1.21.6

PADAPAATH — ROMAN
tena | satyena | jāgṛtam | adhi | pra-cetune | pade | indrāgnī iti | śarma | yacchatam

देवता —        इन्द्राग्नी ;       छन्द        गायत्री;      
स्वर        षड्जः;       ऋषि        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो (इन्द्राग्नी) प्राण और बिजुली हैं वे (तेन) उस (सत्येन) अविनाशी गुणों के समूह से (प्रचेतुने) जिसमें आनन्द के चित्त प्रफुल्लित होता है, (पदे) उस सुखप्रापक व्यवहार में (अधिजागृतम्) प्रसिद्ध गुणवाले होते और (शर्म) उत्तम सुख को भी (यच्छतम्) देते हैं, उनको क्यों उपयुक्त न करना चाहिये॥6॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो नित्य पदार्थ हैं उनके गुण भी नित्य होते हैं, जो शरीर में वा बाहर रहनेवाले प्राणवायु तथा बिजुली हैं, वे अच्छी प्रकार सेवन किये हुए चेतनता करानेवाले होकर सुख देनेवाले होते हैं॥6॥          बीसवें सूक्त में कहे हुए बुद्धिमानों की पदार्थविद्या की सिद्धि के वायु और अग्नि मुख्य हेतु होते हैं, इस अभिप्राय के जानने से पूर्वोक्त बीसवें सूक्त के अर्थ के साथ इस इक्कीसवें सूक्त के अर्थ का मेल जानना चाहिये॥    
यह भी सूक्त सायणाचार्य्य आदि तथा यूरोपदेशवासी विलसन आदि ने विरुद्ध अर्थ से वर्णन किया है॥
                                      यह इक्कीसवां सूक्त और तीसरा वर्ग पूरा हुआ॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
6. इन्द्र और अग्नि! जिस स्वर्ग-लोक में कर्म-फल जाना जाता है, वहीं इस यज्ञ के लिए तुम जागो और हमें सुख प्रदान करो।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
6. Watch ye, through this your truthfulness, there in the place of spacious view Indra and Agni, send us bliss. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Watch you, through this your truthfulness, there in the place of spacious view Indra and Agni, send us bliss.

H H Wilson (On the basis of Sayana)
6. By this unfailing sacrifice, by you rendered vigilant, Indra and Agni, in the station which affords knowledge (of the conse­quence of acts), and bestow upon us happiness.

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