ऋग्वेद 1.20.6
उत त्यं चमसं नवं त्वष्टुर्देवस्य निष्कृतम्। अकर्त चतुरः पुनः॥6॥
पदपाठ — देवनागरी
उ॒त। त्यम्। च॒म॒सम्। नव॑म्। त्वष्टुः॑। दे॒वस्य॑। निःऽकृ॑तम्। अक॑र्त। च॒तुरः॑। पुन॒रिति॑॥ 1.20.6
PADAPAATH — ROMAN
uta | tyam | camasam | navam | tvaṣṭuḥ | devasya | niḥ-kṛtam | akarta |
caturaḥ | punariti
देवता — ऋभवः ; छन्द — गायत्री;
स्वर — षड्जः; ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जब विद्वान् लोग जो (त्वष्टुः) शिल्पी अर्थात् कारीगर (देवस्य) विद्वान् का (निष्कृतम्) सिद्ध किया हुआ काम सुख का देनेवाला है, (त्यम्) उस (नवम्) नवीन दृष्टिगोचर कर्म को देखकर (उत) निश्चय से (पुनः) उसके अनुसार फिर (चतुरः) भू जल अग्नि और वायु से सिद्ध होनेवाले शिल्पकामों को (अकर्त्त) अच्छी प्रकार सिद्ध करते हैं, तब आनन्दयुक्त होते हैं॥6॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मनुष्य लोग किसी क्रियाकुशल कारीगर के निकट बैठकर उसकी चतुराई दृष्टिगोचर करके फिर सुख के साथ कारीगरी के काम करने को समर्थ हो सकते हैं॥6॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
6. त्वष्टा का वह नया चमस बिलकुल तैयार हो गया था; परन्तु उसे ऋभुओं ने चार टुकड़ों में विभक्त कर दिया।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
6. The sacrificial ladle, wrought newly by the God Tvastar’s hand- Four
ladles have ye made thereof.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
The sacrificial ladle, wrought newly by the god Tvastar’s hand- Four ladles have you made thereof. [6]
H H Wilson (On the basis of Sayana)
6. The Rbhus have divided unto four the new ladle, the work of the divine Tvasti.
Tvasta, in the Pauranika mythology, is the carpenter or artisan of the gods; so Sayana says of him, he is a divinity whose duty with relation to the gods is carpentry- devasambandhih taksanavyaparah. Whether he has Vedic authority of a more decisive description than the allusion of the text, does not appear. The same may be said of his calling the Rbhus the disciples of Tvasta Tvastuh sisyah Rbhavah. The act ascribed to them in the text, of making one ladle four, has probably, rather reference to some innovation in the objects of libation, than to the mere multiplication of the wooden spoons used to pour out the Soma juice. The Nitimanjari says, that Agni, coming to a sacrifice which the Rbhus celebrated, became as one of them, and therefore they made the ladle fourfold, that each might have his share.