ऋग्वेद 1.19.5

ये शुभ्रा घोरवर्पसः सुक्षत्रासो रिशादसः। मरुद्भिरग्न आ गहि॥5॥

पदपाठ — देवनागरी
ये। शु॒भ्राः। घो॒रऽव॑र्पसः। सु॒ऽक्ष॒त्रासः॑। रि॒शाद॑सः। म॒रुत्ऽभिः॑। अ॒ग्ने॒। आ। ग॒हि॒॥ 1.19.5

PADAPAATH — ROMAN
ye | śubhrāḥ | ghora-varpasaḥ | su-kṣatrāsaḥ | riśādasaḥ | marut-bhiḥ | agne | ā | gahi

देवता —        अग्निर्मरुतश्च ;       छन्द        गायत्री;      
स्वर        षड्जः;       ऋषि        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(ये) जो (घोरवर्पसः) घोर अर्थात् जिनका पदार्थों को छिन्न-भिन्न करनेवाला रूप जो और (रिशादसः) रोगों को नष्ट करनेवाला (सुक्षत्रासः) तथा अन्तरिक्ष में निर्भय राज्य करनेहारे और (शुभ्राः) अपने गुणों से सुशोभित पवन हैं, उनके साथ (अग्ने) भौतिक अग्नि (आगहि) प्रकट होता अर्थात् कार्य्य सिद्धि को देता है॥5॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो यज्ञ के धूम से शोधे हुये पवन हैं, वे अच्छे राज्य के करानेवाले होकर रोग आदि दोषों का नाश करते हैं। और जो अशुद्ध अर्थात् दुर्गन्ध आदि दोषों से भरे हुये हैं वे सुखों का नाश करते हैं, इससे मनुष्यों को चाहिये कि अग्नि में होमद्वारा वायु की शुद्धि से अनेक प्रकार के सुखों को सिद्ध करें॥5॥      यह छत्तीसवां वर्ग समाप्त हुआ॥ 

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
5. जो सुशोभन और उग्र रूप धारण करनेवाले हैं, जो पर्याप्त बलशाली और शत्रु-संहारी हैं, अग्निदेव, उन्हीं मरुद्गण के साथ आओ।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
5. Brilliant, and awful in their form, mighty, devourers of their foes’: O Agni, with those Maruts come. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Brilliant, and awful in their form, mighty, devourers of their foes’: Agni, with those Maruts come. [5]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
5. Who are brilliant, of terrific forms, who are possessors of great wealth, and are devourers of the malevolent: come, Agni with the Maruts.

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