ऋग्वेद 1.19.1
प्रति त्यं चारुमध्वरं गोपीथाय प्र हूयसे। मरुद्भिरग्न आ गहि॥1॥
पदपाठ — देवनागरी
प्रति॑। त्यम्। चारु॑म्। अ॒ध्व॒रम्। गो॒ऽपी॒थाय॑। प्र। हू॒य॒से॒। म॒रुत्ऽभिः॑। अ॒ग्ने॒। आ। ग॒हि॒॥ 1.19.1
PADAPAATH — ROMAN
prati | tyam | cārum | adhvaram | go–pīthāya | pra | hūyase | marut-bhiḥ |
agne | ā | gahi
देवता — अग्निर्मरुतश्च ; छन्द — गायत्री;
स्वर — षड्जः; ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो (अग्ने) भौतिक अग्नि (मरुद्भिः) विशेष पवनों के साथ (आगहि) सब प्रकार से प्राप्त होता है, वह विद्वानों की क्रियाओं से (त्यम्) उक्त (चारुम्) (अध्वरम्) (प्रति) प्रत्येक उत्तम-2 यज्ञ में उनकी सिद्धि वा (गोपीथाय) अनेक प्रकार की रक्षा के लिये (प्रहूयसे) अच्छी प्रकार क्रिया में युक्त किया जाता है॥1॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो यह भौतिक अग्नि प्रसिद्ध सूर्य्य और विद्युत् रूप करके पवनों के साथ प्रदीप्त होता है, वह विद्वानों को प्रशंसनीय बुद्धि से हरएक क्रिया की सिद्धि वा सबकी रक्षा के लिये गुणों के विज्ञानपूर्वक उपदेश करना वा सुनना चाहिये॥1॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
1. अग्निदेव! इस सुन्दर यज्ञ में सोमरस का पान करने के लिए तुम बुलाये जाते हो; इसलिए मरुद्गण के साथ आओ।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
1. To this fair sacrifice to drink the milky draught thou art invoked: O
Agni, with the Maruts come.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
To this fair sacrifice to drink the milky draught you are invoked: Agni, with the Maruts come. [1]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
1. Earnestly are your invoked to this perfect rite, to drink the Soma juice: come, Agni, with the Maruts.