ऋग्वेद 1.17.2

गन्तारा हि स्थोऽवसे हवं विप्रस्य मावतः। धर्तारा चर्षणीनाम्॥2॥

पदपाठ — देवनागरी
गन्ता॑राः। हि। स्थः। अव॑से। हव॑म्। विप्र॑स्य। माव॑तः। ध॒र्तारा॑। च॒र्ष॒णी॒नाम्॥ 1.17.2

PADAPAATH — ROMAN
gantārāḥ | hi | sthaḥ | avase | havam | viprasya | māvataḥ | dhartārācarṣaṇīnām

देवता        इन्द्रावरुणौ ;       छन्द        यवमध्याविराड्गायत्री ;      
स्वर        षड्जः;       ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो (हि) निश्चय करके ये संप्रयोग किये हुए अग्नि और जल (मावतः) मेरे समान पण्डित तथा (विप्रस्य) बुद्धिमान् विद्वान् के (हवम्) पदार्थों का लेना देना करानेवाले होम वा शिल्प व्यवहार को (गन्तारा) प्राप्त होते तथा (चर्षणीनाम्) पदार्थों के उठानेवाले मनुष्य आदि जीवों के (धर्त्तारा) धारण करनेवाले (स्थः) होते हैं, इससे मैं इनको अपने सब कामों की (अवसे) क्रिया की सिद्धि के लिये (आवृणे) स्वीकार करता हूँ॥2॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
पूर्वमन्त्र से इस मन्त्र में (आवृणे) इस पद का ग्रहण किया है। विद्वानों से युक्ति के साथ कलायन्त्रों में युक्त किये हुए अग्नि जल जब कलाओं से बल में आते हैं, तब रथों को शीघ्र चलाने उनमें बैठे हुए मनुष्य आदि प्राणी पदार्थों के धारण कराने और सबको सुख देनेवाले होते हैं॥2॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
2. तुम मेरे जैसे पुरोहितों की रक्षा के लिए मेरा आह्वान ग्रहण करो। तुम मनुष्यों के स्वामी हो।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
2 Guardians of men, ye ever come with ready succour at the call Of every singer such as I. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Guardians of men, you ever come with ready succour at the call Of every singer such as I. [2]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
2. For you are ever ready, guardians of mankind, to grant protection on the appeal of a minister such as I am.

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