ऋग्वेद 1.16.7
अयं ते स्तोमो अग्रियो हृदिस्पृगस्तु शंतमः।
अथा सोमं सुतं पिब॥7॥
पदपाठ — देवनागरी
अ॒यम्। ते॒। स्तोमः॑। अ॒ग्रि॒यः। हृ॒दि॒ऽस्पृक्। अ॒स्तु॒। शम्ऽत॑मः। अथ॑। सोम॑म्। सु॒तम्। पि॒ब॒॥ 1.16.7
PADAPAATH — ROMAN
ayam | te | stomaḥ | agriyāḥ | hṛdii-spṛk | astu | śam-tamaḥ | atha | somam
| sutam | piba
देवता — इन्द्र:; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मनुष्यों को जैसे यह वायु प्रथम (सुतम्) उत्पन्न किये हुए (सोमम्) सब पदार्थों के रस को (पिब) पीता है, (अथ) उसके अनन्तर (ते) जो उस वायु का (अग्रियः) अत्त्युत्तम (हृदिस्पृक्) अन्तःकरण में सुख का स्पर्श करानेवाला (स्तोमः) उसके गुणों से प्रकाशित होकर क्रियाओं का समूह विदित (अस्तु) हो, वैसे काम करने चाहियें॥7॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मनुष्यों के लिये उत्तम गुण तथा शुद्ध किया हुआ यह पवन अत्यन्त सुखकारी होता है॥7॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
7. इन्द्र! यह स्तुति श्रेष्ठ है। यह तुम्हारे लिए हृदयस्पर्शी और सुखकर हो। अनन्तर संस्कृत सोम पीओ।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
7. Welcome to thee be this our HYMN,
reaching thy heart, most excellent: Then drink the Soma juice expressed.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
Welcome to you be this our hymn, reaching your heart, most excellent: Then drink the soma juice expressed.
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
7. May this our excellent hymn, touching your heart, be grateful to you, and thence drink the effused libation.