ऋग्वेद 1.16.6

इमे सोमास इन्दवः सुतासो अधि बर्हिषि।
ताँ इन्द्र सहसे पिब॥6॥

पदपाठ — देवनागरी
इ॒मे। सोमा॑सः। इन्द॑वः। सु॒तासः॑। अधि॑। ब॒र्हिषि॑। तान्। इ॒न्द्र॒। सह॑से। पि॒ब॒॥ 1.16.6

PADAPAATH — ROMAN
ime | somāsaḥ | indavaḥ | sutāsaḥ | adhi | barhiṣi | tān | indra | sahase | piba

देवता        इन्द्र:;       छन्द        गायत्री;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो (अधि) (बर्हिषि) जिसमें सब पदार्थ वृद्धि को प्राप्त होते हैं, उस अन्तरिक्ष में (इमे) ये (सोमासः) जिनसे सुख उत्पन्न होते हैं, (इन्दवः) और सब पदार्थों को गीला करनेवाले रस हैं, वे (सहसे) बल आदि गुणों के लिये ईश्वर ने (सुतासः) उत्पन्न किये हैं, (तान्) उन्हीं को (इन्द्र) वायु क्षण-क्षण में (पिब) पिया करता है॥6॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
ईश्वर ने इस संसार में प्राणियों के बल आदि वृद्धि के लिये जितने मूर्त्तिमान् पदार्थ उत्पन्न किये हैं, सूर्य्य से छिन्न-भिन्न किये हुये उनको पवन अपने निकट करके धारण करता है, उसके संयोग से प्राणी और अप्राणी बल-पराक्रम वाले होते हैं॥6॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
6. यह तरल सोमरस बिछाये हुए कुशों पर पर्याप्त अभिषुत (संस्कृत) है। इन्द्र! बल के लिए इस सोम का पान करो।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
6. Here are the drops of Soma juice expressed on sacred grass: thereof Drink, Indra, to increase thy might. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Here are the drops of soma juice expressed on sacred grass: thereof Drink, Indra, to increase your might. [6]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
6. These dripping Soma juices are effused upon the sacred grass: drink them, Indra, (to recruit your) vigour.

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