ऋग्वेद 1.16.1

आ त्वा वहन्तु हरयो वृषणं सोमपीतये। इन्द्र त्वा सूरचक्षसः॥1॥

पदपाठ देवनागरी
आ। त्वा॒। व॒ह॒न्तु॒। हर॑यः। वृष॑णम्। सोम॑ऽपीतये। इन्द्र॑। त्वा॒। सूर॑ऽचक्षसः॥ 1.16.1

PADAPAATH — ROMAN
ā | tvā | vahantu | harayaḥ | vṛṣaṇam | soma-pītaye | indra | tvā | sūra-cakṣasaḥ

देवता        इन्द्र:;       छन्द        गायत्री;       स्वर        षड्जः;    
ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे विद्वान् ! जिस (वृषणम्) वर्षा करनेहारे सूर्य्यलोक को (सोमपीतये) जिस व्यवहार में सोम अर्थात् ओषधियों के अर्क खिचे हुये पदार्थों का पान किया जाता है, उसके लिये (सूरचक्षसः) जिनका सूर्य्य में दर्शन होता है, (हरयः) हरण करनेहारे किरण प्राप्त करते हैं, (त्वा) उसको तू भी प्राप्त हो, जिसको सब कारीगर लोग प्राप्त होते हैं, उसको सब मनुष्य (आवहन्तु) प्राप्त हों। हे मनुष्यो ! जिसको हम लोग जानते है (त्वा) उसको तुम भी जानो॥1॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो सूर्य्य की प्रत्यक्ष दीप्ति सब रसों के हरने सबका प्रकाश करने तथा वर्षा करानेवाली हैं, वे यथायोग्य अनुकूलता के साथ सेवन करने से मनुष्यों को उत्तम-उत्तम सुख देती हैं॥1॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
1. यथेप्सित-वर्षक इन्द्र! तुम्हारे घोड़े, तुम्हें सोम-पान कराने के लिए, यहां ले आयें। सूर्य की तरह प्रकाश-युक्त पुरोहित मंत्रों द्वारा तुम्हें प्रकाशित करें।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
1. LET thy Bay Steeds bring thee, the Strong, hither to drink the Soma draught- Those, Indra, who are bright as suns. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
LET your bay steeds bring you, the Strong, here to drink the soma draught- Those, Indra, who are bright as suns. [1]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
1. Indra, let your· coursers hither bring you, bestower of de­sires, to drink the Soma juice; may (the priests), radiant as the Sun, (make you manifest).

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