ऋग्वेदः 1.9.9
वसोरिन्द्रं वसुपतिं गीर्भिर्गृणन्त ऋग्मियम्। होम गन्तारमूतये॥9॥
पदपाठ — देवनागरी
वसोः॑। इन्द्र॑म्। वसु॑ऽपतिम्। गीः॒ऽभिः। गृ॒णन्तः॑। ऋ॒ग्मिय॑म्। होम॑। गन्ता॑रम्। ऊ॒तये॑॥ 1.9.9
PADAPAATH — ROMAN
vasoḥ | indram | vasu-patim | gīḥ-bhiḥ | gṛṇantaḥ | ṛgmiyam | homa |
gantāram | ūtaye
देवता
— इन्द्र:; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(गीर्भिः) वेदवाणी से, (गृणन्तः) स्तुति करते हुये हमलोग, (वसुपतिं) अग्नि, पृथिवी, वायु, अन्तरिक्ष, आदित्यलोक, द्यौ अर्थात् प्रकाशमान लोक, चन्द्रलोक और नक्षत्र अर्थात् जितने तारे दीखते हैं, इन सबका नाम वसु है क्योंकि ये ही निवास के स्थान हैं। इनका पति स्वामी और रक्षक, (ॠग्मियं) वेदमन्त्रों के प्रकाश करनेहारे, (गन्तारं) सबका अन्तर्यामी अर्थात् अपनी व्याप्ति से सब जगह प्राप्त होने तथा, (इन्द्रं) सबके धारण करनेवाले परमेश्वर को, (वसोः) संसार में सुख के साथ वास कराने का हेतु जो विद्याआदि धन है उसकी, (ऊतये ) प्राप्ति और रक्षा के लिये, (होम) प्रार्थना करते हैं॥9॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
सब मनुष्यों को उचित है कि जो ईश्वरपन का निमित्त, संसार का स्वामी,सर्वत्रव्यापक इन्द्र परमेश्वर है, उसकी प्रार्थना और ईश्वर के न्याय आदि गुणों की प्रशंसा पुरुषार्थ के साथ सब प्रकार से अतिश्रेष्ठ विद्या राज्यलक्ष्मी आदि पदार्थों को प्राप्त होकर उनकी उन्नति और रक्षा सदा करें॥9॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
9. धन की रक्षा के लिए हम स्तुति करके इन्द्र को बुलाते हैं। इन्द्र धन रक्षक, ऋचा-प्रिय और यज्ञ-गमन-कर्त्ता हैं।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
9. Praising with songs the praise-worthy who cometh to our aid, we call
Indra, the Treasure-Lord of wealth.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
Praising with songs the praise-worthy who cometh to our aid, we call Indra, the Treasure-Lord of wealth. [9]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
9. We invoke for the preservation of our property, Indra, the lord of wealth, the object of sacred verses, the repairer (to the place of sacrifice), praising him with our praises.
Here, again, we have only gantaram, he who goes, that is, according to the comment, he who is accustomed to go to the chamber which is appropriated to sacrifices, yagadese gamanasilam.