ऋग्वेदः 1.9.4

असृग्रमिन्द्र ते गिरः प्रति त्वामुदहासत। अजोषा वृषभं पतिम्॥4॥

पदपाठ देवनागरी
असृ॑ग्रम्। इ॒न्द्र॒। ते॒। गिरः॑। प्रति॑। त्वाम्। उद्। अ॒हा॒स॒त॒। अजो॑षाः। वृ॒ष॒भम्। पति॑म्॥ 1.9.4

PADAPAATH — ROMAN
asṛgram | indra | te | giraḥ | prati | tvām | ud | ahāsata | ajoṣāḥ | vṛṣabham | patim

देवता        इन्द्र:;       छन्द        गायत्री;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(इन्द्र) हे परमेश्वर! जो (ते) आपकी, (गिरः) वेदवाणी हैं वे, (वृषभं) सबसे उत्तम सबकी इच्छा पूर्ण करनेवाले, (पतिं) सबके पालन करनेहारे, (त्वां) वेदों के वक्ता आपको, (उदहासन) उत्तमता के साथ जनाती हैं और, जिन वेदवाणियों का आप, (अजोषाः) सेवन करते हो। उन्हीं से मैं भी, (प्रति) उक्त गुणयुक्त आपको, (असृग्रं) अनेक प्रकार से वर्णन करता हूँ॥4॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जिस ईश्वर ने प्रकाश किये हुये वेदों से जैसे अपने-2 स्वभाव गुण और कर्म प्रकट किये हैं, वैसे ही वे सब लोगों को जानने योग्य हैं, क्योंकि ईश्वर के सत्य स्वभाव के साथ अनन्तगुण और कर्म हैं, उनको हम अल्पज्ञ लोग अपने सामर्थ्य से जानने को समर्थ नहीं हो सकते। तथा जैसे हम लोग अपने-2 स्वभाव गुण और कर्मों को जानते हैं, वैसे औरों को उनका यथावत् जानना कठिन होता है, इसी प्रकार सब विद्वान् मनुष्यों को वेदवाणी के बिना ईश्वर आदि पदार्थों को यथावत् जानना कठिन है।इसलिये प्रयत्न से वेदों को जानके उनके द्वारा सब पदार्थों से उपकार लेना तथा उसी ईश्वर को अपना इष्टदेव और पालन करनेहारा मानना चाहिये॥4॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
4. इन्द्र! मैंने तुम्हारी स्तुति की है। तुम इच्छित-वर्षक और पालन-कर्ता हो। मेरी स्तुति तुम्हें प्राप्त हुई है; तुमने उसे ग्रहण कर लिया है।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
4. Songs have outpoured themselves to thee, Indra, the strong, the guardian Lord, And raised themselves unsatisfied. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Songs have outpoured themselves to you, Indra, the strong, the guardian Lord, And raised themselves unsatisfied. [4]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
4. I have addressed to you, Indra, the showerer (of blessings), the protector (of your worshippers), praises which have reached you, and of which you have approved.
Reached You- The Scholiast makes this, reached you in heaven, or Svarga. It may be questioned if the Veda recognizes Svarga as the heaven of Indra.1


1. (emphasised by us – ed.)

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