ऋग्वेदः 1.9.2

एमेनं सृजता सुते मन्दिमिन्द्राय मन्दिने। चक्रिं विश्वानि चक्रये॥2॥

पदपाठ — देवनागरी
आ। ई॒म्। ए॒न॒म्। सृ॒ज॒त॒। सु॒ते। म॒न्दिम्। इन्द्रा॑य। म॒न्दिने॑। चक्रि॑म्। विश्वा॑नि। चक्र॑ये॥ 1.9.2

PADAPAATH — ROMAN
ā | īm | enam | sṛjata | sute | mandim | indrāya | mandine | cakrim | viśvāni | cakraye

देवता        इन्द्र:;       छन्द        गायत्री;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे विद्वानो! (सुते) उत्पन्न हुये इस संसार में, (विश्वानि) सब सुखों के उत्पन्न होने के अर्थ, (मन्दिने) ऐश्वर्य्य प्राप्ति की इच्छा करने तथा, (मन्दिं) आनन्द बढ़ानेवाले, (चक्रये) पुरुषार्थ करने के स्वभाव और, (इन्द्राय) परम ऐश्वर्य्य होनेवाले मनुष्य के लिये, (चक्रिं) शिल्पविद्या से सिद्ध किये हुये साधनों में, (एनं) इन, (ई) जल और अग्नि को, (आसृजत) अति प्रकाशित करो॥2॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
विद्वानों को उचित है कि इस संसार में पृथिवी से लेके ईश्वर पर्यन्त पदार्थों के विशेषज्ञान उत्तम शिल्प विद्या से सब मनुष्यों को उत्तम-2 क्रिया सिखाकर सब सुखों का प्रकाश करना चाहिये॥2॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
2. यदि प्रसन्नतादायक और कार्यसम्पादन में उत्तेजक सोमरस तैयार हो तो, हर्ष-युक्त और सकल-कर्म-साधक इन्द्र को उत्सर्ग करो।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
2. To Indra pour ye forth thejuice, the active gladdening juice to him Ile gladdening, oinnific God. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
To Indra pour you forth the juice, the active gladdening juice to him the gladdening, omnific God. [2]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
2. The libation being prepared, present the exhilarating and efficacious (draught) to the rejoicing Indra, the accomplisher of all things.

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