ऋग्वेदः 1.8.6
समोहे वा य आशत नरस्तोकस्य सनितौ। विप्रासो वा धियायवः॥6॥
पदपाठ — देवनागरी
स॒म्ऽओ॒हे। वा॒। ये। आश॑त। नरः॑। तो॒कस्य॑। सनि॑तौ। विप्रा॑सः। वा॒। धि॒या॒ऽयवः॑॥ 1.8.6
PADAPAATH — ROMAN
sam-ohe | vā | ye | āśata | naraḥ | tokasya | sanitau | viprāsaḥ | vā |
dhiyāyavaḥ
देवता
— इन्द्र:; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(विप्रासः) जो अत्यन्त बुद्धिमान्, (नरः) मनुष्य हैं वे, (समोहे) संग्राम में निमित्त शत्रुओं को जीतने के लिये, (आशत) तत्पर हैं, (वा) अथवा (धियायवः) जो कि विज्ञान देने की इच्छा करनेवाले हैं वे, (तोकस्य) संतानों के, (सनितौ) विद्या की शिक्षा में, (आशत) उद्योग करते रहें॥6॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
ईश्वर सब मनुष्यों को आज्ञा देता है कि- इस संसार में मनुष्यों को दो प्रकार का काम करना चाहिये। इनमें से जो विद्वान् हैं वे अपने शरीर और सेना का बल बढ़ाते और उत्तम विद्या की वृद्धि करके शत्रुओं के बल का सदैव तिरस्कार करते रहें। मनुष्यों को जब-2 शत्रुओं के साथ युद्ध करने की इच्छा हो तब-2 सावधान होके प्रथम उनकी सेना आदि पदार्थों से कम से कम अपना दोगुना बल करके उनके पराजय से प्रजा की रक्षा करनी चाहिये। तथा जो विद्याओं के पढ़ाने की इच्छा करनेवाले हैं, वे शिक्षा देने योग्य पुत्र वा कन्याओं को यथायोग्य विद्वान् करने में अच्छे प्रकार यत्न करें, जिससे शत्रुओं के पराजय और अज्ञान के विनाश से चक्रवर्त्ति राज्य और विद्या की वृद्धि सदैव बनी रहे॥6॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
6. जो पुरुष रण-स्थलों में जानेवाले हैं, पुत्र-प्राप्ति के इच्छुक हैं अथवा जो विशेषज्ञ ज्ञानाकांक्षा में तत्पर हैं, वे सब इन्द्र की स्तुतिद्वारा सिद्धि प्राप्त करते हैं।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
6. Which aideth those to win them sons, who come as heroes to the fight, Or
singers loving holy thoughts.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
Which aids those to win them sons, who come as heroes to the fight, Or singers loving holy thoughts. [6]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
6. Whatever men have recourse to Indra in battle, or for the acquirement of offspring, and the wise who are desirous of understanding (obtain their desires).