ऋग्वेदः 1.8.5

महाँ इन्द्रः परश्च नु महित्वमस्तु वज्रिणे। द्यौर्न प्रथिना शवः॥5॥

पदपाठ — देवनागरी
म॒हान्। इन्द्रः॑। प॒रः। च॒। नु। म॒हि॒ऽत्वम्। अ॒स्तु॒। व॒ज्रिणे॑। द्यौः। न। प्र॒थि॒ना। शवः॑॥ 1.8.5

PADAPAATH — ROMAN
mahān | indraḥ | paraḥ | ca | nu | mahi-tvam | astu | vajriṇe | dyauḥ | na | prathinā | śavaḥ

देवता        इन्द्र:;       छन्द        निचृद्गायत्री ;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(न) जैसे मूर्त्तिमान् संसार को प्रकाशयुक्त करने के लिये, (द्यौः) सूर्य्यप्रकाश, (प्रथिना) विस्तार से प्राप्त होता है वैसे ही जो, (महान्) सब प्रकार से अनन्त गुण अत्त्युत्तमस्वभाव अतुल सामर्थ्ययुक्त और, (परः) अत्यन्त श्रेष्ठ, (इन्द्रः) सब जगत् की रक्षा करने वाला परमेश्वर है और, (वज्रिणे) न्याय की रीति से दण्ड देने वाले परमेश्वर, (नु) जो कि अपने सहाय रूपी हेतु से हमको विजय देता है उसी का यह, (महित्वं) महिमा, (च) तथा बल है॥5॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में उपमालंकार है। धार्मिक युद्ध करनेवाले मनुष्यों को उचित है कि जो शूरवीर युद्ध में अतिधीर मनुष्यों के साथ होकर दुष्ट शत्रुओं पर अपना विजय हुआ है, उसका धन्यवाद अनन्त शक्तिमान् जगदीश्वर को देना चाहिये कि जिससे निरभिमान होकर मनुष्यों के राज्य की सदैव बढ़ती होती रहे॥5॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
5. इन्द्रदेव महान् सर्वोच्च हैं। वज्रवाही इन्द्र को महत्व आश्रय करे। इन्द्र की सेना आकाश के समान विशाल है।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
5. Mighty is Indra, yea supreme; greatness be his, the Thunderer: Wide as the heaven extends his power 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Mighty is Indra, yea supreme; greatness be his, the Thunderer: Wide as the heaven extends his power [5]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
5. Mighty is Indra, and supreme; may magnitude ever (belong) to the bearer of the thunderbolt; may his strong (armies) be ever vast as the heavens.

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