ऋग्वेदः 1.8.3

इन्द्र त्वोतास आ वयं वज्रं घना ददीमहि। जयेम सं युधि स्पृधः॥3॥

पदपाठ — देवनागरी
इन्द्र॑। त्वाऽऊ॑तासः। आ। व॒यम्। वज्र॑म्। घ॒ना। द॒दी॒म॒हि॒। जये॑म। सम्। यु॒धि। स्पृधः॑॥ 1.8.3

PADAPAATH — ROMAN
indra | tvāūtāsaḥ | ā | vayam | vajram | ghanā | dadīmahi | jayema | sam | yudhi | spṛdhaḥ

देवता        इन्द्र:;       छन्द        गायत्री;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे (इन्द्र) अनन्तबलवान् ईश्वर! (त्वोतासः) आपके सकाश से रक्षा आदि और बल को प्राप्त हुए, (वयं) हमलोग धार्मिक और शूरवीर होकर अपने विजय के लिये, (वज्रं) शत्रुओं के बल का नाश करने का हेतु आग्नेयास्त्रादि अस्त्र और, (घना) श्रेष्ठ शस्त्रों का समूह जिनको कि भाषा में तोप, बन्दूक, तलवार और धनुष वाण आदि करके प्रसिद्ध कहते हैं, जो युद्ध की सिद्धि में हेतु हैं उनको, (आददीमहि) ग्रहण करते हैं, जिस प्रकार हमलोग आपके बल का आश्रय और सेना की पूर्ण सामग्री करके, (स्पृधः) ईर्ष्या करने वाले शत्रुओं को (युधि) संग्राम में (जयेम) जीतें॥3॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मनुष्यों को उचित है कि धर्म और ईश्वर के आश्रय से शरीर की पुष्टि और विद्या करके आत्मा का बल तथा युद्ध की पूर्ण सामग्री परस्पर अविरोध और उत्साह आदि श्रेष्ठ गुणों को ग्रहण करके दुष्ट शत्रुओं के पराजय करने से अपने और सब प्राणियों के लिये सुख सदा बढ़ाते रहें॥3॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
3. इन्द्र! तुम्हारे द्वारा क्षित होकर हम कठिन अस्त्र धारण करके डाह करनेवाले शत्रु को पराजित करेंगे।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
3. Aided by thee, the thunder-armed, Indra, may we lift up the bolt, And conquer all our foes in fight. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Aided by you, the thunder-armed, Indra, may we lift up the bolt, And conquer all our foes in fight. [3]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
3. Defended by you, Indra, we possess a ponderous weapon, wherewith we may entirely conquer our opponents.

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