ऋग्वेदः 1.7.10

इन्द्रं वो विश्वतस्परि हवामहे जनेभ्यः। अस्माकमस्तु केवलः॥10॥

पदपाठ — देवनागरी
इन्द्र॑म्। वः॒। वि॒श्वतः॑। परि॑। हवा॑महे। जने॑भ्यः। अ॒स्माक॑म्। अ॒स्तु॒। केव॑लः॥ 1.7.10

PADAPAATH — ROMAN
indram | vaḥ | viśvataḥ | pari | havāmahe | janebhyaḥ | asmākam | astu | kevalaḥ

देवता        इन्द्र:;       छन्द        पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री;      
स्वर       षड्जः;       ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हम लोग जिस (विश्वतः) सब पदार्थों वा (जनेभ्यः) सब प्राणियों से (परि) उत्तम-2 गुणों करके श्रेष्ठतर (इन्द्रं) पृथिवी में राज्य देनेवाले परमेश्वर का (हवामहे) बार-2 अपने हृदय में स्मरण करते हैं। वही परमेश्वर (वः) हे मित्र लोगो ! तुम्हारे और हमारे पूजा करने योग्य इष्ट देव (केवलः) चेतन मात्र स्वरूप एक ही है॥10॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
ईश्वर इस मन्त्र में सब मनुष्यों के हित के लिये उपदेश करता है–  हे मनुष्यो !तुमको अत्यन्त उचित है कि मुझे छोड़कर उपासना करने योग्य किसी दूसरे देव कोकभी मत मानो, क्योंकि एक मुझको छोड़कर कोई दूसरा ईश्वर नहीं है। जब वेद में ऐसा उपदेश है तो जो मनुष्य अनेक ईश्वर वा उसके अवतार मानता है, वह सबसे बड़ामूढ़ है॥10॥    
इस सप्तम सूक्त में जिस ईश्वर ने अपनी रचना के सिद्ध रहने के लिये अन्तरिक्ष में सूर्य्य और वायु स्थापन किये हैं, वही एक सर्वशक्तिमान् सर्व दोषरहित और सब मनुष्यों का पूज्य है। इस व्याख्यान से इस सप्तम सूक्त के मन्त्रों के अर्थ के साथ छठे सूक्त के अर्थ की संगति जाननी चाहिये॥10॥
इस सूक्त के मन्त्रों के अर्थ सायणाचार्य आदि आर्य्यावर्त वासियों और विलसन आदि अंग्रेजलोगों ने भी उलटे किये हैं।
                          यह दूसरा अनुवाक, सातवां सूक्त और चौदहवां वर्ग समाप्त हुआ॥           

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
10. सबके अग्रणी इन्द्र को तुम लोगों के लिए हम आह्वान करते हैं। इन्द्र हमारे ही हैं।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
10. For your sake from each side we call Indra away from other men: Ours, and none others’, may he be. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
For your sake from each side we call Indra away from other men: Ours, and none others’, may he be.

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
10. We invoke for you, Indra, who is everywhere among men: may he be exclusively our own.

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