ऋग्वेदः 1.6.9

अतः परिज्मन्ना गहि दिवो वा रोचनादधि। समस्मिन्नृञ्जते गिरः॥9

पदपाठ — देवनागरी
अतः॑। प॒रि॒ज्म॒न्। आ। ग॒हि॒। दि॒वः। वा॒। रो॒च॒नात्। अधि॑। सम्। अ॒स्मि॒न्। ऋ॒ञ्ज॒ते॒। गिरः॑॥ 1.6.9

PADAPAATH — ROMAN
ataḥ | parijman | ā | gahi | divaḥ | vā | rocanāt | adhi | sam | asmin | ṛñjate | giraḥ

देवता        मरूतः;       छन्द        गायत्री;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जिस वाणी में वायु का सब व्यवहार सिद्ध होता है वह (परिज्मन्) सर्वत्र गमनकर्त्ता हुआ सब पदार्थों को तले ऊपर पहुंचानेवाला पवन (अतः) इस पृथिवी स्थान से जलकणों का ग्रहण करके (अभ्यागहि) ऊपर पहुंचाता और फिर (दिवः) सूर्य्य के प्रकाश से (वा) अथवा (रोचनात्) जो कि रुचि को बढ़ानेवाला मेघमण्डल है उससे जल को गिराता हुआ तले पहुंचाता है। (अस्मिन्) इसी बाहिर और भीतर रहनेवाले पवन में सब पदार्थ स्थिति को प्राप्त होते हैं॥9॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
यह बलवान् वायु अपने गमन आगमन गुण से सब पदार्थों के गमन आगमन धारण तथा शब्दों के उच्चारण और श्रवण का हेतु है।
इस मन्त्र में सायणाचार्य्य ने जो उणादिगण में सिद्ध ‘परिज्मन्’ शब्द था उसे छोड़कर मनिन् प्रत्ययान्त कल्पना किया है, सो केवल उनकी भूल है॥9॥
‘हे इधर-उधर विचरनेवाले मनुष्य देहधारी ! इन्द्र तू आगे पीछे और ऊपर से हमारे समीप आ, यह सब गानेवालों की इच्छा है।‘ यह भी उनका अर्थ अत्यन्त विपरीत है, क्योंकि इस वायुसमूह में मनुष्यों की वाणी शब्दों के उच्चारण व्यवहार से प्रसिद्ध होने से प्राणरूप वायु का ग्रहण है॥9॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
9. सर्वदिशा-व्यापक मरुद्गण! अन्तरिक्ष, आकाश या ज्वलन्त सुर्यमंडल से आओ। इस यज्ञ में पुरोहित लोग तुम लोगों की भली भाँति स्तुति करते हैं।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
9. Come from this place, O Wanderer, or downward from the light of heaven: Our songs of praise all yearn for this. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Come from this place, Wanderer, or downward from the light of heaven: Our songs of praise all yearn for this. [9]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
9. Therefore, circumambient (troop of Maruts), come hither, whether from the region of the sky or from the solar sphere; for in this rite (the priest) fully recites your praises. The region of the winds is property the Dyu-loka, the heaven, or region above the Antariksa or sky, or they may come from a sphere of light further above, or the solar region, Aditya-mondalat.

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