ऋग्वेदः 1.6.8
अनवद्यैरभिद्युभिर्मखः सहस्वदर्चति। गणैरिन्द्रस्य काम्यैः॥8॥
पदपाठ — देवनागरी
अ॒न॒व॒द्यैः। अ॒भिद्यु॑ऽभिः। म॒खः। सह॑स्वत्। अ॒र्च॒ति॒। ग॒णैः। इन्द्र॑स्य। काम्यैः॑॥ 1.6.8
PADAPAATH — ROMAN
anavadyaiḥ | abhidyu-bhiḥ | makhaḥ | sahasvat | arcati | gaṇaiḥ | indrasya | kāmyaiḥ
देवता — मरूतः; छन्द — निचृद्गायत्री ; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो यह (मखः) सुख और पालन होने का हेतु यज्ञ है वह (इन्द्रस्य) सूर्य्य की (अनवद्यैः) निर्दोष (अभिद्युभिः) सब ओर से प्रकाशमान और (काम्यैः) प्राप्ति की इच्छा करने के योग्य (गणैः) किरणों वा पवनों के साथ मिलकर सब पदार्थों को (सहस्वत्) जैसे दृढ़ होते हैं वैसे ही (अर्चति) श्रेष्ठ गुण करनेवाला होता है॥8॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो शुद्ध अत्युत्तम होम के योग्य पदार्थों के अग्नि में किये हुए होम से सिद्ध किया हुआ यज्ञ है, वह वायु और सूर्य्य की किरणों की शुद्धि के द्वारा रोगनाश करने के हेतु से सब जीवों को सुख देकर बलवान् करता है॥8॥
‘यहां मख शब्द से यज्ञ करनेवाले का ग्रहण है, तथा देवों के शत्रु का भी ग्रहण है।‘ यह भी मोक्षमूलर साहब का कहना ठीक नहीं, क्योंकि जो मख शब्द यज्ञ का वाची है वह सूर्य्य की किरणों के सहित अच्छे-2 वायु के गुणों से हवन किये हुये पदार्थों को सर्वत्र पहुंचाता है, तथा वायु और वृष्टिजल की शुद्धि का हेतु होने से सब प्राणियों को सुख देनेवाला होता है। और मख शब्द के उपमावाचक होने से देवों के शत्रु का भी ग्रहण नहीं॥8॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
8. निर्दोष, सुरलोकाभिनत और कामना के विषयीभूत मरुद्गण के साथ इन्द्र को बलिष्ठ समझकर यह यज्ञ पूजा करता है।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
8. With Indra’s well beloved hosts, the blameless, hastening to heaven, The sacrificer cries aloud.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
With Indra’s well beloved hosts, the blameless, hastening to heaven, The sacrificer cries aloud. [8]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
8. This right is performed in adoration of the powerful Indra, along with the irreproachable, heavenward-tending, and amiable bands (of the Maruts).