ऋग्वेदः 1.5.8

त्वां स्तोमा अवीवृधन्त्वामुक्था शतक्रतो । त्वां वर्धन्तु नो गिरः ॥8॥

पदपाठ — देवनागरी
त्वाम् । स्तोमाः॑ । अ॒वी॒वृ॒ध॒न् । त्वाम् । उ॒क्था । श॒त॒क्र॒तो॒ इति॑ शतऽक्रतो । त्वाम् । व॒र्ध॒न्तु॒ । नः॒ । गिरः॑ ॥ 1.5.8

PADAPAATH — ROMAN
tvām | stomāḥ | avīvṛdhan | tvām | ukthā | śatakrato itiśata-krato | tvām | vardhantu | naḥ | giraḥ

देवता        इन्द्र:;       छन्द        पादनिचृद्गायत्री ;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे (शतक्रतो) असंख्यात कर्मों के करने और अनन्त विज्ञान के जाननेवाले परमेश्वर जैसे (स्तोमाः) वेदके स्तोत्र तथा (उक्था) प्रशंसनीय स्तोत्र आपको (अवीवृधन्) अत्यन्त प्रसिद्ध करते हैं वैसे ही (नः) हमारी (गिरः) विद्या और सत्यभाषणयुक्त वाणी भी (त्वाम्) आपको (वर्धन्तु) प्रकाशित करें ॥8॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो विश्व में पृथिवी सूर्य्य आदि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रचे हुए पदार्थ हैं, वे सब जगत् की उत्पत्ति करनेवाले तथा धन्यवाद देने के योग्य परमेश्वर ही को प्रसिद्ध करके जानते हैं कि जिससे न्याय और उपकार आदि ईश्वर के गुणों को अच्छी प्रकार जान के विद्वान् भी वैसे ही कर्मों में प्रवृत्त हों ॥8॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
8. हे सौ यज्ञों के करनेवाले इन्द्र! तुमको सोममंत्र और ऋक्मंत्र—दोनों प्रतिष्ठित कर चुके हैं। हमारी स्तुति भी तुमको प्रतिष्ठित या संवर्द्धित करे।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
8. Our chants of praise have strengthened thee, O Satakratu, and our lauds So strengthen thee the songs we sing. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Our chants of praise have strengthened you, Satakratu, and our lauds Therefore strengthen the songs we sing. [8]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
8. The chants (of the Soma) have magnified you, Satakratu, the hymns (of the R.k) have magnified you; may our praises magnify you.
The Scholiast supplies these particulars, the terms of the text being simply stomah and uktha; the former, he says, are the praises of the singers of the Sama (Samaganam stotrani), the latter the hymns of the reciters of the Bahvrc (Bahvrcanam sastrani); but of this and other passages where Sayana inserts the designation of other Vedas- the Sama and the Yajus- it is to be observed that the accuracy of his additions involves the prior existence of those Vedas, at least to the hymns of the Rk in which they are supposed to be alluded to; a conclusion which there is reason to hesitate admitting.

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