ऋग्वेदः 1.5.6

त्वं सुतस्य पीतये सद्यो वृद्धो अजायथाः । इन्द्र ज्यैष्ठ्याय सुक्रतो ॥6॥

पदपाठ — देवनागरी
त्वम् । सु॒तस्य॑ । पी॒तये॑ । स॒द्यः । वृ॒द्धः । अ॒जा॒य॒थाः॒ । इन्द्र॑ । ज्यैष्ठ्या॑य । सु॒क्र॒तो॒ इति॑ सुऽक्रतो ॥ 1.5.6

PADAPAATH — ROMAN
tvam | sutasya | pītaye | sadyaḥ | vṛddhaḥ | ajāyathāḥ | indra | jyaiṣṭhyāya | sukrato itisu-krato

देवता        इन्द्र:;       छन्द        निचृद्गायत्री ;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे (इन्द्र) विद्यादिपरमैश्वर्य्ययुक्त (सुक्रतो) श्रेष्ठ कर्म करने और उत्तम बुद्धि वाले विद्वान् मनुष्य ! (त्वम्) तू (सद्यः) शीघ्र (सुतस्य) संसारी पदार्थों के रसके (पीतये) पान वा ग्रहण और (ज्यैष्ठ्याय) अत्युत्तम कर्मोंके अनुष्ठान करने केलिये (वृद्धः) विद्या आदि शुभ गुणोंके ज्ञानके ग्रहण और सबके उपकार करने में श्रेष्ठ (अजायथाः) हो ॥6॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
ईश्वर जीव के लिये उपदेश करता है कि- हे मनुष्य ! तू जबतक विद्या में वृद्ध होकर अच्छी प्रकार परोपकार न करेगा, तबतक तुझको मनुष्यपन और सर्वोत्तम सुख की प्राप्ति कभी न होगी, इससे तू परोपकार करनेवाला सदा हो ॥6॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
6. हे शोभनकर्मा इन्द्र! सोमपान के लिए, सदा से ज्येष्ठ होने के कारण, तुम सबके आगे रहते हो।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
6. Thou, grown at once to perfect strength, wast born to drink the Soma juice, Strong Indra, for preeminence. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
You, grown at once to perfect strength, were born to drink the soma juice, Strong Indra, for pre-eminence. [6]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
6. Your, Indra, performer of good works, has suddenly become of augmented vigour for the sake of drinking the libation, and (maintaining) seniority (among the gods). Seniority- Jyaisthyam, abstract of Jyestha, elder, oldest; but it may also mean best or chiefest.

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