ऋग्वेदः 1.5.2

पुरूतमं पुरूणामीशानं वार्याणाम् । इन्द्रं सोमे सचा सुते ॥2॥

पदपाठ — देवनागरी
पु॒रु॒ऽतम॑म् । पु॒रू॒णाम् । ईशा॑नम् । वार्या॑णम् । इन्द्र॑म् । सोमे॑ । सचा॑ । सु॒ते ॥ 1.5.2

PADAPAATH — ROMAN
puru-tamam | purūṇām | īśānam | vāryāṇam | indram | some | sacā | sute

देवता        इन्द्र:;       छन्द        आर्च्युष्णिक् ;       स्वर        ऋषभः ;      
ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे मित्र विद्वान् लोगो (वार्य्याणाम्) अत्यन्त उत्तम (पुरूणाम्) आकाश से लेके पृथिवी पर्यन्त असंख्यात पदार्थों को (ईशानम्) रचने में समर्थ (पुरूतमम्) दुष्टस्वभाव वाले जीवों को ग्लानि प्राप्त करानेवाले (इन्द्रम्) और श्रेष्ठ जीवों को सब ऐश्वर्य्य के देनेवाले परमेश्वर के तथा (वार्य्याणाम्) अत्यन्त उत्तम (पुरूणाम्) आकाश से लेके पृथिवीपर्यन्त बहुत से पदार्थों की विद्याओं के साधक (पुरूतमम्) दुष्ट जीवों वा कर्मों के भोगके निमित्त और (इन्द्रम्) जीवमात्रको सुख दुःख देनेवाले पदार्थों के हेतु भौतिक वायु के गुणों को (अभिप्रगायत) अच्छी प्रकार उपदेश करो और (तु) जो कि (सुते) रस खींचने की क्रियासे प्राप्त वा (सोमे) उसविद्यासे प्राप्त होने योग्य (सचा) पदार्थोंके निमित्त कार्य्य हैं उनको उक्त विद्याओं से सबके उपकार के लिये यथायोग्य युक्त करो ॥2॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में श्लेषालंकार है। पीछे के मन्त्र से इस मन्त्र में (सखायः) (तु) (अभिप्रगायत) इन तीन शब्दों को अर्थ के लिये लेना चाहिये। इस मन्त्र में यथायोग्य व्यवस्था करके उनके किये हुए कर्मों का फल देने से ईश्वर तथा इन कर्मों के फल भोग कराने के कारण वा विद्या और सब क्रियाओं के साधक होने से भौतिक अर्थात् संसारी वायु का ग्रहण किया है ॥2॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
2. सोमरस के तैयार हो जाने पर सब लोग एकत्र होकर बहु-शत्रुविध्वंसक और श्रेष्ठ धन के धनपति इन्द्र को लक्ष्य कर गाओ।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
2. To him the richest of the rich, the Lord of treasures excellent, Indra, wi th Soma juice outpoured. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
To him the richest of the rich, the Lord of treasures excellent, Indra, with soma juice outpoured. [2]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
2. When the libation is poured forth, respectively praise Indra, the discomfiter of many enemies, the lord of many blessings.

You may also like...