ऋग्वेदः 1.5.10

मा नो मर्ता अभि द्रुहन्तनूनामिन्द्र गिर्वणः । ईशानो यवया वधम् ॥10॥

पदपाठ — देवनागरी
मा । नः॒ । मर्ताः॑ । अ॒भि । द्रु॒ह॒न् । त॒नूना॑म् । इ॒न्द्र॒ । गि॒र्व॒णः॒ । ईशा॑नः । य॒व॒य॒ । व॒धम् ॥ 1.5.10

PADAPAATH — ROMAN
mā | naḥ | martāḥ | abhi | druhan | tanūnām | indra | girvaṇaḥ | īśānaḥ | yavaya | vadham

देवता        इन्द्र:;       छन्द        गायत्री;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे (गिर्वणः) वेद वा उत्तम-उत्तम शिक्षाओंसे सिद्धकी हुई वाणियों करके सेवा करने योग्य सर्वशक्तिमान् (इन्द्र) सबके रक्षक (ईशानः) परमेश्वर आप (नः) हमारे (तनूनाम्) शरीरों के (वधम्) नाश दोषसहित (मा) कभी मत (यवय) कीजिये तथा आपके उपदेशसे (मर्त्ता) ये सब मनुष्य लोग भी (नः) हमसे (माभिद्रुहन्) वैर कभी न करें ॥10॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
कोई मनुष्य अन्याय से किसी प्राणी को मारने की इच्छा न करे, किन्तु परस्पर सब मित्रभाव से वर्त्तें, क्योंकि जैसे परमेश्वर बिना अपराध से किसी का तिरस्कार नहीं करता, वैसे ही सब मनुष्यों को भी करना चाहिये ॥10॥
इस पंचम सूक्त की विद्या से मनुष्यों को किस प्रकार पुरुषार्थ और सबका उपकार करना चाहिये, इस विषय के कहने से चौथे सूक्त के अर्थ के साथ इसकी संगति जाननी चाहिये॥
इस सूक्त का भी अर्थ सायणाचार्य्य आदि और डाक्टर विलसन आदि साहबों ने उल्टा किया है।                                       यह पांचवां सूक्त और दसवां वर्ग समाप्त हुआ ॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
10. हैं स्तवनीय इन्द्र! तुम सामर्थ्यवान् हो। ऐसा करना कि विरोधी हमारे शरीर पर आघात न कर सकें। हमारा वध न होने देना।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
10. O Indra, thou who lovest song, let no man hurt our bodies, keep Slaughter far from us, for thou canst. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Indra, you who love song, let no man hurt our bodies, keep Slaughter far from us, for you can.[10]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
10. Indra, who are the object of praises, let our men do injury to our persons; you are mighty, keep off violence.

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