ऋग्वेदः 1.4.7
एमाशुमाशवे भर यज्ञश्रियं नृमादनम् । पतयन्मन्दयत्सखम् ॥7॥
पदपाठ — देवनागरी
आ । ई॒म् । आ॒शुम् । आ॒शवे॑ । भ॒र॒ । य॒ज्ञ॒ऽश्रिय॑म् । नृ॒ऽमाद॑नम् । प॒त॒यत् । म॒न्द॒यत्ऽस॑खम् ॥ 1.4.7
PADAPAATH — ROMAN
ā | īm | āśum | āśave | bhara | yajña-śriyam | nṛ-mādanam | patayat | mandayat-sakham
देवता — इन्द्र:; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे इन्द्र परमेश्वर ! आप अपनी कृपा करके हम लोगों के अर्थ (आशवे) यानों में सब सुख वा वेगादि गुणों की शीघ्र प्राप्ति के लिये जो (आशुम्) वेग आदि गुणवाले अग्नि वायु आदि पदार्थ (यज्ञश्रियम्) चक्रवर्त्ति राज्य के महिमा की शोभा (ई्म्) जल और पृथिवी आदि (नृमादनम्) जो कि मनुष्यों को अत्यन्त आनन्द देनेवाले तथा (पतयत्) स्वामिपन को करनेवाले वा (मन्दयत्सखम्) जिसमें आनन्दको प्राप्त होने वा विद्या के जनानेवाले मित्र हों ऐसे (भर) विज्ञान आदि धन को हमारे लिये धारण कीजिये ॥7॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
ईश्वर पुरुषार्थी मनुष्य पर कृपा करता है। आलस करनेवाले पर नहीं, क्योंकि जब तक मनुष्य ठीक-ठीक पुरुषार्थ नहीं करता तब तक ईश्वर की कृपा और अपने किये हुए कर्मों से प्राप्त हुए पदार्थों की रक्षा भी करने में समर्थ कभी नहीं हो सकता इसलिये मनुष्यों को पुरुषार्थी होकर ही ईश्वर की कृपा के भागी होना चाहिये ॥7॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
7. यह सोमरस शीघ्र मादक और यज्ञ का सम्पत्स्वरूप है। यह मनुष्य को प्रफुल्लकर्ता, कार्य-साधनकर्ता और हर्ष-प्रदाता इन्द्र का मित्र है। यज्ञ-व्यापी इन्द्र को इसे दो।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
7 Unto the swift One bring the swift, man-cheering, grace of sacrifice, That to the Friend gives wings and joy.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
To the swift One bring the swift, man-cheering, grace of sacrifice, That to the friend gives wings and joy. [7]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
7. Offer to Indra, the pervader (of every rite of libation), the juice that is present (at the three ceremonies), the grace of the sacrifice, the exhilarator of mankind, the perfecter of the act, the favourite of (that Indra) who gives happiness (to the offerer).
These epithets of the Soma juice would be somewhat unintelligible without the aid of the Scholiast. The perfecter of the acts, karmani prapnuvantam, is his rendering of patayantam, causing to fall, and the last phrase, mandayatsakham1, the friend of the delighter, he explains as in the text.