ऋग्वेदः 1.4.4
परेहि विग्रमस्तृतमिन्द्रं पृच्छा विपश्चितम् । यस्ते सखिभ्य आ वरम् ॥4॥
पदपाठ — देवनागरी
परा॑ । इ॒हि॒ । विग्र॑म् । अस्तृ॑तम् । इन्द्र॑म् । पृ॒च्छ॒ । वि॒पः॒ऽचित॑म् । यः । ते॒ । सखि॑ऽभ्यः । आ । वर॑म् ॥ 1.4.4
PADAPAATH — ROMAN
parā | ihi | vigram | astṛtam | indram | pṛccha | vipaḥ-citam | yaḥ | te | sakhi-bhyaḥ | ā | varam
देवता — इन्द्र:; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे विद्या की अपेक्षा करनेवाले मनुष्य लोगो ! जो विद्वान् तुझ और (ते) तेरे (सखिभ्यः) मित्रों के लिये (आवरम्) श्रेष्ठ विज्ञान को देता हो उस (विग्रम्) जो श्रेष्ठ बुद्धिमान् (अस्तृतम्) हिंसा आदि अधर्मरहित (इन्द्रम्) विद्या परमैश्वर्य्ययुक्त (विपश्चितम्) यथार्थ सत्य कहनेवाले मनुष्य के समीप जाकर उस विद्वान् से (पृच्छ) अपने सन्देह पूँछ और फिर उनके कहे हुए यथार्थ उत्तरों को ग्रहण करके औरों के लिये तू भी उपदेश कर परन्तु जो मनुष्य अविद्वान् अर्थात् मूर्ख ईर्ष्या करने वा कपट और स्वार्थ में संयुक्त हो उससे तू (परेहि) सदा दूर रह ॥4॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
सब मनुष्यों को यही योग्य है कि प्रथम सत्य का उपदेश करनेहारे वेद पढे हुए और परमेश्वर की उपासना करनेवाले विद्वानों को प्राप्त होकर अच्छी प्रकार उनके साथ प्रश्नोत्तर की रीति से अपनी सब शंका निवृत्त करें, किन्तु विद्याहीन मूर्ख मनुष्य का संग वा उनके दिये हुए उत्तरों में विश्वास कभी न करे ॥4॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
4. हिंसा-द्वेष-रहित और प्रतिभाशाली इन्द्र के पास जाओ और मुझ मेधावी की कथा जानने की चेष्टा करो। वही तुम्हारे बन्धुओं को उत्तम धन देते हैं।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
4. Go to the wise unconquered One, ask thou of Indra, skilled in song, Him who is better than thy friends.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
Go to the wise unconquered One, ask you of Indra, skilled in song, Him who is better than your friends. [4]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
4. Go, worshipper, to the wise and uninjured Indra, who bestows the best (of blessings) on your friends, and ask him of the (fitness of the) learned (priest who recites his praise). The injunction is addressed to the Yajamana, who is desired to ask if the Hota, or invoker whom he employs, is fit for his duty. The Hota himself is supposed to enjoin this.