ऋग्वेदः 1.4.3

अथा ते अन्तमानां विद्याम सुमतीनाम् । मा नो अति ख्य आ गहि ॥3॥

पदपाठ — देवनागरी
अथ॑ । ते॒ । अन्त॑मानाम् । वि॒द्याम॑ । सु॒ऽम॒ती॒नाम् । मा । नः॒ । अति॑ । ख्यः॒ । आ । ग॒हि॒ ॥ 1.4.3

PADAPAATH — ROMAN
atha | te | antamānām | vidyāma | su-matīnām | mā | naḥ | ati | khyaḥ | ā | gahi

देवता        इन्द्र:;       छन्द        विराड्गायत्री ;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे परम ऐश्वर्ययुक्त परमेश्वर ! (ते) आपके (अन्तमानाम्) निकट अर्थात् आपको जानकर आपके समीप तथा आपकी आज्ञा में रहने वाले विद्वान् लोग, जिन्हों की (सुमतीनाम्) वेदादि शास्त्र परोपकार रूपी धर्म करने में श्रेष्ठ बुद्धि हो रही है उनके समागम से हम लोग (विद्याम) आपको जान सकते हैं और आप (नः) हमको (आगहि) प्राप्त अर्थात् हमारे आत्माओं में प्रकाशित हूजिये और (अथ) इसके अनन्तर कृपा करके अन्तर्यामिरूप से हमारे आत्माओं में स्थित हुए (मातिख्यः) सत्य उपदेश को मत रोकिये किंतु उसकी प्रेरणा सदा किया कीजिये ॥3॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जब मनुष्य लोग इन धार्मिक श्रेष्ठ विद्वानों के समागम से शिक्षा और विद्या को प्राप्त होते हैं, तभी पृथिवी से लेकर परमेश्वरपर्य्यन्त पदार्थों के ज्ञान द्वारा नाना प्रकार से सुखी होके फिर वे अन्तर्यामी ईश्वर के उपदेश को छोडकर कभी इधर-उधर नहीं भ्रमते ॥3॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
3. हम तुम्हारे पास रहनेवाले बुद्धिशाली लोगों के बीच पड़कर तुम्हें जानें। हमारी उपेक्षा कर दूसरों में प्रकाशित न होना। हमारे पास आओ।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
3. So may we be acquainted with thine innermost benevolence: Neglect us not, come hitherward. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
So may we be acquainted with your innermost benevolence: Neglect us not, come over here. [3]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
3. We recognize you in the midst of the right-minded, who are nearest to you: come to us; pass us not by to reveal (yourself to others).
Here again we have elliptical phraseology; the original is ma no ati khyah,1 lit. do not speak beyond us; the complete sense is supplied by the Scholiast.

You may also like...