ऋग्वेदः 1.4.10
यो रायोऽवनिर्महान्त्सुपारः सुन्वतः सखा । तस्मा इन्द्राय गायत ॥10॥
पदपाठ — देवनागरी
यः । रा॒यः । अ॒वनिः॑ । म॒हान् । सु॒ऽपा॒रः । सु॒न्व॒तः । सखा॑ । तस्मै॑ । इन्द्रा॑य । गा॒य॒त॒ ॥ 1.4.10
PADAPAATH — ROMAN
yaḥ | rāyaḥ | avaniḥ | mahān | su-pāraḥ | sunvataḥ | sakhā | tasmai | indrāya | gāyata
देवता — इन्द्र:; छन्द — निचृद्गायत्री ; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे विद्वान् मनुष्यो ! जो बड़ों से बड़ा (सुपारः) अच्छी प्रकार सब कामनाओं की परिपूर्णता करनेहारा (सुन्वतः) प्राप्त हुए सोमविद्यावाले धर्मात्मा पुरुष को (सखा) मित्रता से सुख देने तथा (रायः) विद्या सुवर्ण आदि धन का (अवनिः) रक्षक और इस संसार में उक्त पदार्थों में जीवों को पहुँचाने और उनका देनेवाला करुणामय परमेश्वर है (तस्मै) उसकी तुम लोग (गायत) नित्य पूजा किया करो ॥10॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
किसी मनुष्य को केवल परमेश्वर की स्तुति मात्र ही करने से सन्तोष न करना चाहिये, किन्तु उसकी आज्ञा में रहकर और ऐसा समझकर कि परमेश्वर मुझको सर्वत्र देखता है, इसलिये अधर्म से निवृत्त होकर और परमेश्वर के सहाय की इच्छा करके मनुष्य को सदा उद्योग ही में वर्त्तमान रहना चाहिये ॥10
उस तीसरे सूक्त की कही हुई विद्या से, धर्मात्मा पुरुषों को परमेश्वर का ज्ञान सिद्ध करना तथा आत्मा और शरीर के स्थिर भाव आरोग्य की प्राप्ति तथा दुष्टों के विजय और पुरुषार्थ से चक्रवर्त्ति राज्य को प्राप्त होना, इत्यादि अर्थ करके इस चौथे सूक्त के अर्थ की संगति समझनी चाहिये ॥
आर्यावर्त्तवासी सायणाचार्य्य आदि विद्वान् तथा यूरोपखण्डवासी अध्यापक विलसन आदि साहबों ने इस सूक्त की भी व्याख्या ऐसी विरुद्ध की है कि यहाँ उसका लिखना व्यर्थ है ॥ यह चौथा सूक्त और आठवाँ वर्ग समाप्त हुआ ॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
10. जो धन के त्राता और महापुरुष हैं, जो सत्कर्म-पालक और भक्तों के मित्र हैं। उन इन्द्र को लक्ष्य कर गाओ।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
10. To him the mighty stream of wealth, prompt friend ot’him who pours the juice, yea, to this Indra sing your song.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
To him the mighty stream of wealth, prompt friend of him who pours the juice, Yea, to this Indra sing your song.
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
10. Sing unto that Indra who is the protector of wealth, the mighty, the accomplisher of good deeds, the friend of the offerer of the libation.