ऋग्वेदः 1.4.1

सुरूपकृत्नुमूतये सुदुघामिव गोदुहे । जुहूमसि द्यविद्यवि ॥1॥

पदपाठ — देवनागरी
सु॒रू॒प॒ऽकृ॒त्नुम् । ऊ॒तये॑ । सु॒दुघा॑म्ऽइव । गो॒ऽदुहे॑ । जु॒हू॒मसि॑ । द्यवि॑ऽद्यवि ॥ 1.4.1

PADAPAATH — ROMAN
surūpa-kṛtnum | ūtaye | sudughām-iva | go–duhe | juhūmasi | dyavi-dyavi

देवता        इन्द्र:;       छन्द        गायत्री;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जैसे दूध की इच्छा करनेवाला मनुष्य दूध दोहने के लिये सुलभ दुहानेवाली गौओं को दोह के अपनी कामनाओं को पूर्ण कर लेता है, वैसे हम लोग (द्यविद्यवि) सब दिन अपने निकट स्थित मनुष्यों को (ऊतये) विद्या की प्राप्ति के लिये (सुरूपकृत्नुम्) परमेश्वर जो कि अपने प्रकाश से सब पदार्थों को उत्तम रूपयुक्त करनेवाला है उसकी (जुहूमसि) स्तुति करते हैं ॥1॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मंत्र में उपमालंकार है। जैसे मनुष्य गाय के दूध को प्राप्त होके अपने प्रयोजन को सिद्ध करते हैं, वैसे ही विद्वान् धार्मिक पुरूष भी परमेश्वर की उपासना से श्रेष्ठ विद्या आदि गुणों को प्राप्त होकर अपने-अपने कार्यों को पूर्ण करते हैं ॥1॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
1. जिस तरह दूध दुहनेवाली दोहन के लिए गाय को बुलाती है, उसी प्रकार अपनी रक्षा के लिए हम भी सत्कर्मशील इन्द्र को प्रतिदिन बुलाते हैं।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
1. As a good cow to him who milks, we call the doer of fair deeds, To our assistance day by day. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Indra AS A GOOD cow to him who milks, we call the doer of fair deeds, To our assistance day by day. [1]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
1. Day by day we invoke the doer of good works for our protection, as a good milch-cow for the milking (is called by the milker).

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