ऋग्वेदः 1.2.9

कवी नो मित्रावरुणा तुविजाता उरुक्षया । दक्षं दधाते अपसम् ॥9॥

पदपाठ देवनागरी
क॒वी इति॑ । नः॒ । मि॒त्रावरु॑णा । तु॒वि॒ऽजा॒तौ । उ॒रु॒ऽक्षया॑ । दक्ष॑म् । द॒धा॒ते॒ इति॑ । अ॒पस॑म् ॥ 1.2.9

PADAPAATH — ROMAN
kavī iti | naḥ | mitrāvaruṇā | tuvi-jātau | uru-kṣayā | dakṣam | dadhāteiti | apasam

देवता        मित्रावरुणौ ;       छन्द        गायत्री;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ महर्षि दयानन्द सरस्वती
(तुविज्ञातौ) जो बहुत कारणों से उत्पन्न और बहुतों में प्रसिद्ध (उरुक्षया) संसार के बहुत से पदार्थों में रहनेवाले (कवी) दर्शनादि व्यवहार के हेतू (मित्रावरुणा) पूर्वोक्त मित्र और वरुण हैं वे (नः) हमारे (दक्षं) बल तथा सुख वा दुःखयुक्त कर्मों को (दधाते) धारण करते हैं ॥9॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो ब्रह्माण्ड में रहनेवाले बल और कर्म के निमित्त पूर्वोक्त मित्र और वरुण हैं, उनसे क्रिया और विद्याओं की पुष्टि तथा धारणा होती है ॥9॥
जो प्रथम सूक्त में अग्निशब्दार्थ का कथन किया है। उसके सहायकारी वायु,इन्द्र, मित्र और वरुण के प्रतिपादन करने से प्रथम सूक्तार्थ के साथ इस दूसरे सूक्तार्थ की संगति समझ लेनी चाहिये ॥
इस सूक्त का अर्थ सायणाचार्य्यादि और विलसन आदि यूरोपदेशवासी लोगों ने अन्यथा कथन किया है
यह दूसरा सूक्त और चौथा वर्ग समाप्त हुआ ॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
9. इन्द्र और वरुण बुद्धिसम्पन्न, जनहितकारी और विविध-लोकाश्रय हैं। वे हमारे बल और कर्म की रक्षा करें।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
9 Our Sages, Mitra-Varuna, wide dominion, strong by birth, Vouchsafe us strength that worketh well. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Our sages, Mitra-Varuna, wide dominion, strong by birth, Vouchsafe us strength that works well.[9]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
9. Sapient Mitra and Varuna, prosper our sacrifice and increase our strength: you are born for the benefit of many, you are the refuge of multitudes.2

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