ऋग्वेदः 1.2.2

वाय उक्थेभिर्जरन्ते त्वामच्छा जरितारः । सुतसोमा अहर्विदः ॥2॥

पदपाठ — देवनागरी
वायो॒ इति॑ । उ॒क्थेभिः॑ । ज॒र॒न्ते॒ । त्वाम् । अच्छ॑ । ज॒रि॒तारः॑ । सु॒तऽसो॑माः । अ॒हः॒ऽविदः॑ ॥ 1.2.2

PADAPAATH — ROMAN
vāyo iti | ukthebhiḥ | jarante | tvām | accha | jaritāraḥ | suta-somāḥ | ahaḥ-vidaḥ

देवता        वायु:;       छन्द        पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री;      
स्वर       षड्जः;       ऋषि         मधुच्छन्दाः वैश्वामित्रः  

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
“(वायो) हे अनन्त बलवान् ईश्वर ! जो-जो (अहर्विदः) विज्ञानरूप प्रकाश को प्राप्त होने (सुतसोमाः) ओषधि आदि पदार्थों के रस को उत्पन्न करने (जरितारः) स्तुति और सत्कार के करनेवाले विद्वान् लोग हैं वे (उक्थेभिः) वेदोक्त स्तोत्रों से (त्वा्म्) आपको (अच्छ) साक्षात् करने के लिये (जरन्ते) स्तुति करते हैं ॥2॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
यहाँ श्लेषालंकार है। इस मन्त्र में जो वेदादि शास्त्रों में कहे हुए स्तुतियों के निमित्त स्तोत्र हैं, उनसे व्यवहार और परमार्थ विद्या की सिद्धि के लिये परमेश्वर और भौतिक वायु के गुणों का प्रकाश किया गया है।           इस मन्त्र में वायु शब्द से परमेश्वर और भौतिक वायु के ग्रहण करने के लिये पहिले मन्त्र में कहे हुए प्रमाण ग्रहण करने चाहियें ॥2॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
2. हे वायुदेव! यज्ञज्ञाता स्तोता लोग अभिषुत या अभिषवादि संस्कार-रूप प्रक्रिया-विशेष-द्वारा परिशोधित सोमरस के साथ तुम्हारे उद्देश्य से स्तुति-वचन कहकर तुम्हारा स्तव करते हैं।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
2. Knowing the days, with Soma juice poured forth, the singers glorify Thee, Vayu, with their  HYMNs of praise. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Knowing the days, with soma juice poured forth, the singers glorify You, Vayu, with their hymns of praise. [2]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
2. Vayu, your praisers praise you with holy praises having poured out the Soma juice, and knowing the (fit) season.
With Holy Praises- With Ukthas,1 also designated Sastras, hymns of praise recited, not chanted or sung.

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