ऋग्वेदः 1.15.4

अग्ने देवाँ इहा वह सादया योनिषु त्रिषु। परि भूष पिब ऋतुना॥4॥

पदपाठ — देवनागरी
अग्ने॑। दे॒वान्। इ॒ह। आ। व॒ह॒। सा॒दय॑। योनि॑षु। त्रि॒षु। परि॑। भू॒ष॒। पिब॑। ऋ॒तुना॑॥ 1.15.4

PADAPAATH — ROMAN
agne | devān | iha | ā | vaha | sādaya | yoniṣu | triṣu | pari | bhūṣa | piba | ṛtunā

देवता        अग्निः ;       छन्द        भुरिग्गायत्री ;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
यह (अग्ने) प्रसिद्ध वा अप्रसिद्ध भौतिक अग्नि (इह) इस संसार में (ॠतुना) ॠतुओं के साथ (त्रिषु) तीन प्रकार के (योनिषु) जन्म नाम और स्थानरूपी लोकों में (देवान्) श्रेष्ठगुणों से युक्त पदार्थों को (आ वह) अच्छी प्रकार प्राप्त करता (सादय) हननकर्त्ता (परिभूष) सब ओर से भूषित करता और सब पदार्थों के रसों को (पिब) पीता है॥4॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
दाहगुणयुक्त यह अग्नि अपने रूप के प्रकाश से सब ऊपर नीचे वा मध्य में रहनेवाले पदार्थों को अच्छी प्रकार सुशोभित करता, होम और शिल्पविद्या में संयुक्त किया हुआ दिव्य-2 सुखों का प्रकाश करता है॥4॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
4. अग्नि! देवों को यहाँ बुलाओ। तीन यज्ञ-स्थानों में उन्हें बैठाओ। उन्हें अलंकृत करो और तुम ऋतु के साथ सोमपान करो।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
4. Bring the Gods, Agni; in the three appointed places set them down: Surround them, and with Rtu drink. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Bring the gods, Agni; in the three appointed places set them down: Surround them, and with Ritu drink. [4]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
4. Agni, bring the gods hither, arrange them in three places decorate them; drink with Rtu.
Either at the three daily ceremonies, at dawn, midday, and sunset, or in the three fires lighted at sacrifices- the Ahavaniya, Daksina and Garhapatya.

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