ऋग्वेदः 1.14.8
ये यजत्रा य ईड्यास्ते ते पिबन्तु जिह्वया। मधोरग्ने वषट्कृति॥8॥
पदपाठ — देवनागरी
ये। यज॑त्राः। ये। ईड्याः॑। ते। ते॒। पि॒ब॒न्तु॒। जि॒ह्वया॑। मधोः॑। अ॒ग्ने॒। वष॑ट्ऽकृति॥ 1.14.8
PADAPAATH — ROMAN
ye | yajatrāḥ | ye | īḍyāḥ | te | te | pibantu | jihvayā | madhoḥ | agne |
vaṣaṭ-kṛti
देवता — विश्वेदेवा:; छन्द — पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री;
स्वर — षड्जः;
ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(ये) जो मनुष्य विद्युदादि पदार्थ (यजत्राः) कलादिकों में संयुक्त करते हैं (ते) वे, वा (ये) जो गुणवाले (ईड्याः) सब प्रकार से खोजने योग्य हैं (ते) वे (जिह्वया) ज्वालारूपी शक्ति से (अग्ने) अग्नि में (वषट्कृति) यज्ञ के विशेष-2 काम करने से (मधोः) मधुर गुणों के अंशों को (पिवन्तु) यथावत् पीते हैं॥8॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मनुष्यों को इस जगत् में सब संयुक्त पदार्थों से दो प्रकार का कर्म करना चाहिये,अर्थात् एक तो उनके गुणों का जानना, दूसरा उनसे कार्य्य की सिद्धि करना। जो विद्युत् आदि पदार्थ सब मूर्त्तिमान् पदार्थों से रस को ग्रहण करके फिर छोड़ देते हैं,इससे उनकी शुद्धि के लिये सुगन्धि आदि पदार्थों का होम निरन्तर करना चाहिये,जिससे वे सब प्राणियों को सुख सिद्ध करनेवाले हों॥8॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
8. जो देव यजनीय और स्तुति-पात्र हैं, अग्नि! वे वषट्कारकाल में तुम्हारी रसना-द्वारा सोमरस पान करें।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
8. Let them, O Agni, who deserve worship and praise drink with thy tongue
Tle meath in solemn sacrifice.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
Let them, Agni, who deserve worship and praise drink with your tongue Tle
meath in solemn sacrifice. [8]
Horace Hayman Wilson (On the
basis of Sayana)
8. Let those objects of veneration and of praise, drink with your tongue,
of the Soma juice, at the moment of libation.