ऋग्वेदः 1.14.4
प्र वो भ्रियन्त इन्दवो मत्सरा मादयिष्णवः। द्रप्सा मध्वश्चमूषदः॥4॥
पदपाठ — देवनागरी
प्र। वः॒। भ्रि॒य॒न्ते॒। इन्द॑वः। म॒त्स॒राः। मा॒द॒यि॒ष्णवः॑। द्र॒प्साः। मध्वः॑। च॒मू॒ऽसदः॑॥ 1.14.4
PADAPAATH — ROMAN
pra | vaḥ | bhriyante | indavaḥ | matsarāḥ | mādayiṣṇavaḥ | drapsāḥ |
madhvaḥ | camū-sadaḥ
देवता — विश्वेदेवा:; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे मनुष्यो ! जैसे मैंने धारण किये, पूर्व मन्त्र में इन्द्र आदि पदार्थ कह आये हैं, उन्हीं से (मध्वः) मधुर गुणवाले (मत्सराः) जिनसे उत्तम आनन्द को प्राप्त होते हैं (मादयिष्णवः) आनन्द के निमित्त (द्रप्साः) जिनसे बल अर्थात् सेना के लोग अच्छी प्रकार आनन्द को प्राप्त होते और (चमूषदः) जिनसे विकट शत्रुओं की सेनाओं से स्थिर होते हैं, उन (इन्दवः) रसवाले सोम आदि ओषधियों के समूह के समूहों को (वः) तुम लोगों के लिये (भ्रियन्ते) अच्छीप्रकार धारण कर रक्खे हैं, वैसे तुम लोग भी मेरे लिये इन पदार्थों को धारण करो॥4॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
ईश्वर सब मनुष्यों के प्रति कहता है कि जो मेरे रचे हुये पहिले मन्त्र में प्रकाशित किये बिजुली आदि पदार्थों से ये सब पदार्थ धारण करके मैंने पुष्ट किये हैं, तथा जो मनुष्य इनमें वैद्यक वा शिल्पशास्त्रों की रीति से उत्तम रस के उत्पादन और शिल्प कार्य्यों की सिद्धि के साथ उत्तम सेना के सम्पादन होने से रोगों का नाश तथा विजय की प्राप्ति करते हैं, वे लोग नानाप्रकार के सुख भोगते हैं॥4॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
4. तुम लोगों के लिए तृप्तिकर, प्रसन्नता-वाहक, विन्दु-रूप, मधुर और पात्र-स्थित सोमरस तैयार हो रहा है।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
4. For you these juices are poured forth that gladden and exhilarate, The
meath-drops resting in the cup.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
For you these juices are poured forth that gladden and exhilarate, The
meath-drops resting in the cup. [4]
Horace Hayman Wilson (On the
basis of Sayana)
4. For all of you are poured out these juices, satisfying, exhilarating, sweet,
falling in drops, or gathered in ladles.