ऋग्वेदः 1.14.3

इन्द्रवायू बृहस्पतिं मित्राग्निं पूषणं भगम्। आदित्यान्मारुतं गणम्॥3॥

पदपाठ — देवनागरी
इ॒न्द्र॒वा॒यू इति॑। बृह॒स्पति॑म्। मि॒त्रा। अ॒ग्निम्। पू॒षण॑म्। भग॑म्। आ॒दि॒त्यान्। मारु॑तम्। ग॒णम्॥ 1.14.3

PADAPAATH — ROMAN
indravāyū iti | bṛhaspatim | mitrā | agnim | pūṣaṇam | bhagam | ādityān | mārutam | gaṇam

देवता        विश्वेदेवा:;       छन्द        गायत्री;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे (कण्वाः) बुद्धिमान् विद्वान् लोगो! आप क्रिया तथा आनन्द की सिद्धि के लिये (इन्द्रवायू) बिजुली और पवन (बृहस्पतिम्) बड़े से बड़े पदार्थों के पालनहेतु सूर्य्यलोक (मित्रा) प्राण (अग्निम्) प्रसिद्ध अग्नि (पूषणम्) ओषधियों के समूह के पुष्टि करनेवाले चन्द्रलोक (भगम्) सुखों के प्राप्त करानेवाले चक्रवर्त्ति आदि राज्य के धन (आदित्याम्) बारहों महीने और (मारुतम्) पवनों के (गणम्) समूह को (अहूषत) ग्रहण तथा (गृणन्ति) अच्छी प्रकार जान के संयुक्त करो॥3॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में पूर्व मन्त्र से ‘कण्वाः’ ‘अहूषत’ और ‘गृणन्ति’ इन तीन पदों की अनुवृत्ति आती है। जो मनुष्य ईश्वर के रचे हुए उक्त इन्द्र आदि पदार्थों और उनके गुणों को जानकर क्रियाओं में संयुक्त करते हैं, वे आप सुखी होकर सब प्राणियों को सुखयुक्त सदैव करते हैं॥3॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
3. इन्द्र, वायु, बृहस्पति, मित्र, अग्नि, पूषा, भग, आदित्य और मरुद्गण को यज्ञ-भाग दान करो।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
3. Indra, Vayu, Brhaspati, Mitra, Agni, Pusan, Bhaga, Adityas, and the Marut host. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Indra, Vayu, Brihaspati, Mitra, Agni, Pusan, Bhaga, Adityas, and the Marut host. [3]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
3. Sacrifice (Agni), to Indra, Vayu, Brhaspati, Mitra, Agni, Pusan and Bhaga, the Adityas, and the troop of Maruts.
Sacrifice, Agni, to, are supplied by the commentary, for the verse contains only the proper names in the objective case: most of these have already occurred. Mitra, Pusan, and Bhaga are forms of the Sun, or Adityas, specified individually, as well as the class of Adityas, or Suns, in the twelve months of the year. Why Brhaspati or Brhaspati should be inserted, is not explained: the etymology of the name is given from Panini, VI. I, 157. Brhas for Brhat, great, divine, a deity; and pati, mas­ter, or protector in his character of spiritual preceptor of the gods.

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