ऋग्वेदः 1.14.10
विश्वेभिः सोम्यं मध्वग्न इन्द्रेण वायुना। पिबा मित्रस्य धामभिः॥10॥
पदपाठ — देवनागरी
विश्वे॑भिः। सो॒म्यम्। मधु॑। अग्ने॑। इन्द्रे॑ण। वा॒युना॑। पिब॑। मि॒त्रस्य॑। धाम॑ऽभिः॥ 1.14.10
PADAPAATH — ROMAN
viśvebhiḥ | somyam | madhu | agne | indreṇa | vāyunā | piba | mitrasya |
dhāma-bhiḥ
देवता — विश्वेदेवा:; छन्द — विराड्गायत्री ; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
(अग्ने) यह अग्नि (इन्द्रेण) परम ऐश्वर्य्य करानेवाले (वायुना) स्पर्श वा गमन करनेहारे पवन के और (मित्रस्य) सब में रहने तथा सबके प्राणरूप होकर वर्त्तनेवाले वायु के साथ (विश्वेभिः) सब (धामभिः) स्थानों से (सोम्यम्) सोम सम्पादन के योग्य (मधु) मधुर आदि गुणयुक्त पदार्थ को (पिब) ग्रहण करता है॥10॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
यह विद्युत् रूप अग्नि ब्रह्माण्ड में रहनेवाले पवन तथा शरीर में रहनेवाले प्राणों के साथ वर्त्तमान होकर सब पदार्थों से रस को ग्रहण करके उगलता है, इससे यह मुख्य शिल्पविद्या का साधन है॥10॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
10. अग्निदेव! तुम सब देवों, इन्द्र, वायु और मित्र के तेजः-पुञ्ज के साथ सोम-मधु पान करो।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
10. With all the Gods, with Indra, with Vayu, and Mitra’s splendours,
drink, Agni, the pleasant Soma juice.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
With all the gods, with Indra, with Vayu, and Mitra’s splendours, drink,
Agni, the pleasant soma juice. [10]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
10. With all the gods, with Indra, Vayu and the glories of Mitra, drink, Agni the sweet Soma juice.
Glories of Mitra- Mitrasya dhamabhih1, with the rays; or according to the commentator, with various forms of Mitra.