ऋग्वेदः 1.13.8
ता सुजिह्वा उप ह्वये होतारा दैव्या कवी। यज्ञं नो यक्षतामिमम्॥8॥
पदपाठ — देवनागरी
ता। सु॒ऽजि॒ह्वौ। उप॑। ह्व॒ये॒। होता॑रा। दैव्या॑। क॒वी इति॑। य॒ज्ञम् नः॒। य॒क्ष॒ता॒म्। इ॒मम्॥ 1.13.8
PADAPAATH — ROMAN
tā | su-jihvau | upa | hvaye | hotārā | daivyā | kavī iti | yajñam naḥ |
yakṣatām | imam
देवता — दैव्यौ होतारौ, प्रचेतसौ ; छन्द — पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री;
स्वर — षड्जः;
ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मैं क्रियाकाण्ड का अनुष्ठान करनेवाला इस घर में जो (नः) हमारे (इमम्) प्रत्यक्ष (यज्ञम्) हवन वा शिल्पविद्यामय यज्ञ को (यक्षताम्) प्राप्त करते हैं, उन (सुजिह्वौ) सुन्दर पूर्वोक्त सात जीभ (होतारा) पदार्थों का ग्रहण करने (कवी) तीव्र दर्शन देने और (दैव्या) दिव्य पदार्थों में रहनेवाले प्रसिद्ध और अप्रसिद्ध अग्नियों को (उपह्वये) उपकार में लाता हूँ॥8॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जैसे एक बिजुली वेग आदि अनेक गुणवाला अग्नि है, इसी प्रकार प्रसिद्ध अग्नि भी है। तथा ये दोनों सकल पदार्थों के देखने में और अच्छे प्रकार क्रियाओं में नियुक्त किये हुये शिल्प आदि अनेक कार्य्यों की सिद्धि के हेतु होते हैं। इसलिये इन्हीं से मनुष्यों को सब उपकार लेने चाहिये॥8॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
8. सुजिह्व, मेधावी और आह्वानकारी देव-द्वय (अग्नि) को बुलाता हूँ। वे हमारा यह यज्ञ सम्पादन करें।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
8. The two Invokers I invite, the wise, divine and sweet of tongue, To
celebrate this our sacrifice.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
The two Invokers I invite, the wise, divine and sweet of tongue, To celebrate this our sacrifice. [8]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
8. I call the two eloquent divine and sage invokers (of the gods), that they may celebrate this our sacrifice.
The construction shows that we have two persons or divinities here; the Scholiast says two Agnis; the Index has daivyau hotarau1. pracetasau, two divine invokers (Pracetasas); or the latter word may mean merely sages, like the kavi of the text.