ऋग्वेदः 1.13.6

वि श्रयन्तामृतावृधो द्वारो देवीरसश्चतः। अद्या नूनं च यष्टवे॥6॥

पदपाठ — देवनागरी
वि। श्र॒य॒न्ता॒म्। ऋ॒त॒ऽवृधः॑। द्वारः॑। दे॒वीः। अ॒स॒श्चतः॑। अ॒द्य। नू॒नम्। च॒। यष्ट॑वे॥ 1.13.6

PADAPAATH — ROMAN
vi | śrayantām | ṛta-vṛdhaḥ | dvāraḥ | devīḥ | asaścataḥ | adya | nūnam | ca | yaṣṭave

देवता        देवीर्द्वार:;       छन्द        गायत्री;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे (मनीषिणः) बुद्धिमान् विद्वानो ! (अद्य) आज (यष्टवे) यज्ञ करने के लिये घर आदि के (असश्चतः) अलग-2 (ॠतावृधः) सत्य सुख और जल के वृद्धि करनेवाले (देवीः) तथा प्रकाशित (द्वारः) दरवाजों का (नूनम्) निश्चय से (विश्रयन्ताम्) सेवन करो, अर्थात् अच्छी रचना से उनको बनाओ॥6॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मनुष्यों को अनेक प्रकार के द्वारों के घर यज्ञशाला और विमान आदि यानों को बनाकर उनमें स्थिति होम और देशान्तरों में जाना-आना करना चाहिये॥6॥        यह चौबीसवाँ वर्ग समाप्त हुआ॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
6. यज्ञशाला का द्वार खोला जाय। वह द्वार यज्ञ का परिवर्द्धक है। द्वार प्रकाशमान और जन-रहित था। आज अवश्य यज्ञ सम्पादन करना होगा।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
6. Thrown open be the Doors Divine, unfailing, that assist the rite, For sacrifice this day and now. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Thrown open be the Doors Divine, unfailing, that assist the rite, For sacrifice this day and now. [6]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
6. Let the bright doors, the augmenters of sacrifice, (hitherto) unentered, be set open, for certainly today is the sacrifice to be made.
The Bright Doors- The doors of the chamber in which the oblation is offered, said to be personifications of Agni; Agnivisesamurtayah).  

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