ऋग्वेदः 1.13.3
नराशंसमिह प्रियमस्मिन्यज्ञ उप ह्वये। मधुजिह्वं हविष्कृतम्॥3॥
पदपाठ — देवनागरी
नरा॒शंस॑म्। इ॒ह। प्रि॒यम्। अ॒स्मिन्। य॒ज्ञे। उप॑। ह्व॒ये॒। मधु॑ऽजिह्वम्। ह॒विः॒ऽकृत॑म्॥ 1.13.3
PADAPAATH — ROMAN
narāśaṃsam | iha | priyam | asmin | yajñe | upa | hvaye | madhu-jihvam |
haviḥ-kṛtam
देवता — नराशंस:; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मैं (अस्मिन्) इस (यज्ञे) अनुष्ठान करने योग्य यज्ञ तथा (इह) संसार में (हविष्कृतम्) जो कि होम करने योग्य पदार्थों से प्रदीप्त किया जाता है, और (मधुजिह्वम्) जिसकी काली, कराली, मनोजवा, सुलोहिता, सुधूम्रवर्णा, स्फुल्लिंगिनी,और विश्वरूपी ये अति प्रकाशमान चपल ज्वालारूपी जीभें हैं। (प्रियम्) जो सब जीवों को प्रीति देने और (नराशंसम्) जिस सुख की मनुष्य प्रशंसा करते हैं,उसके प्रकाश करनेवाले अग्नि को (उपह्वये) समीप प्रज्वलित करता हूँ॥3॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो भौतिक अग्नि इस संसार में होम के निमित्त युक्ति से ग्रहण किया हुआ प्राणियों की प्रसन्नता करानेवाला है, उस अग्नि की सात जीभें हैं। अर्थात् काली-जोकि सुपेद आदि रंग का प्रकाश करने वाली, कराली- सहने में कठिन, मनोजवा- मन के समान वेगवाली, सुलोहिता- जिसका उत्तम रक्तवर्ण है,सुधूम्रवर्णा- जिसका सुन्दर धुमलासा वर्ण है, स्फुल्लिंगिनी- जिससे बहुत से चिनगें उठते हो, तथा विश्वरूपी- जिसका सब रूप हैं। ये देवी अर्थात् अतिशय करके प्रकाशमान और लेलायमाना- प्रकाश से सब जगह जानेवाली सात प्रकार की जिह्वा हैं, अर्थात् सब पदार्थों को ग्रहण करनेवाली होती हैं। इस उक्त सात प्रकार की अग्नि की जीभों से सब पदार्थों में उपकार लेना मनुष्यों को चाहिये॥3॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
3. इस यजन-देश में, इस यज्ञ में प्रिय, मधुजिह्व और हव्यसम्पादक नराशंस नामक अग्नि को हम आह्वान करते हैं।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
3. Dear Narasamsa, sweet of tongue, the giver of oblations, I Invoke to
this our sacrifice.
Translation of Griffith Re-edited by Tormod Kinnes
Dear Narasamsa, sweet of tongue, the giver of oblations, I Invoke to this our sacrifice. [3]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
3. I invoke the beloved Narasamsa, the sweet tongued, the offerer of oblations, to this sacrifice. Narasamsa, him whom men (nara praise (samsanti).1