ऋग्वेदः 1.13.2
मधुमन्तं तनूनपाद्यज्ञं देवेषु नः कवे। अद्या कृणुहि वीतये॥2॥
पदपाठ — देवनागरी
मधु॑ऽमन्तम्। त॒नू॒ऽन॒पा॒त्। य॒ज्ञम्। दे॒वेषु॑। नः॒। क॒वे॒। अ॒द्य। कृ॒णु॒हि॒। वी॒तये॑॥ 1.13.2
PADAPAATH — ROMAN
madhu-mantam | tanū-napāt | yajñam | deveṣu | naḥ | kave | adya | kṛṇuhi |
vītaye
देवता — तनूनपात् ; छन्द — गायत्री; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो (तनूनपात्) शरीर तथा ओषधि आदि पदार्थों के छोटे-2 अंशों का भी रक्षा करने और (कवे) सब पदार्थों का दिखलानेवाला अग्नि है, वह (देवेषु) विद्वानों तथा दिव्यपदार्थों में (वीतये) सुख प्राप्त होने के लिये (अद्य) आज (नः) हमारे (मधुमन्तम्) उत्तम-2 रसयुक्त (यज्ञम्) यज्ञ को (कृणुहि) निश्चित करता है॥2॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जब अग्नि में सुगन्धि आदि पदार्थों का हवन होता है, तभी वह यज्ञ वायु आदि पदार्थों को शुद्ध तथा शरीर और ओषधि आदि पदार्थों की रक्षा करके अनेक प्रकार के रसों को उत्पन्न करता है, तथा वह यज्ञ उन शुद्ध पदार्थों के भोग से प्राणियों के विद्या ज्ञान और बल की वृद्धि भी होती है॥2॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
2. हे मेधावी तनूनपात् नामक अग्नि! हमारे सरस यज्ञ को आज उपभोग के लिए देवों के पास ले जाओ।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
2. Son of Thyself, present, O Sage, our sacrifice to the Gods today. Sweet to the taste, that they may feast.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
Son of Thyself, present, Sage, our sacrifice to the gods today. Sweet to
the taste, that they may feast. [2]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
2. Wise (Agni) who are Tanunapat, present this day our well-flavoured sacrifice to the gods for their food.
Tanunapat, the devourer of clarified butter (tanunapa), or, according to another etymology, the consumer of its own substance (tanu) or fuel. Napat occurs in the Nighantu as a synonym of tanaya, son or offspring; but in this compound the second member is considered to be either ad, who eats, or pa, who preserves; the latter with na prefixed, napat, who dose not preserve, who destroys.