ऋग्वेदः 1.13.12
स्वाहा यज्ञं कृणोतनेन्द्राय यज्वनो गृहे। तत्र देवाँ उप ह्वये॥12॥
पदपाठ — देवनागरी
स्वाहा॑। य॒ज्ञम्। कृ॒णो॒त॒न॒। इन्द्रा॑य। यज्व॑नः। गृ॒हे। तत्र॑। दे॒वान्। उप॑। ह्व॒ये॒॥ 1.13.12
PADAPAATH — ROMAN
svāhā | yajñam | kṛṇotana | indrāya | yajvanaḥ | gṛhe | tatra | devān | upa
| hvaye
देवता — स्वाहाकृत्यः; छन्द — पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री;
स्वर — षड्जः;
ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे शिल्पविद्या के सिद्ध यज्ञ करने और करानेवाले विद्वानों ! तुम लोग जैसे जहाँ (यज्वनः) यज्ञकर्त्ता के (गृहे) घर यज्ञशाला तथा कलाकुशलता से सिद्ध किये हुएविमान आदि यानों में (इन्द्राय) परमैश्वर्य्य की प्राप्ति के लिये परम विद्वानों को बुला के (स्वाहा) उत्तम क्रियासमूह के साथ (यज्ञम्) जिस तीनों प्रकार के यज्ञ को (कृणोतन) सिद्ध करने वाले हों, वैसे वहाँ मैं (देवान्) उन चतुर श्रेष्ठ विद्वानों को (उपह्वये) प्रार्थना के साथ बुलाता रहूँ॥12॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मनुष्य लोग विद्या तथा क्रियावान् होकर यथायोग्य बने हुये स्थानों में उत्तम विचार से क्रियासमूह से सिद्ध होनेवाले कर्मकाण्ड को नित्य करते हुए और वहाँविद्वानों को बुलाकर वा आप ही उनके समीप जाकर उनकी विद्या और क्रिया की चतुराई को ग्रहण करें। हे सज्जन लोगो ! तुमको विद्या और क्रिया की कुशलता आलस्य से कभी नहीं छोड़नी चाहिये, क्योंकि ऐसे ही ईश्वर की आज्ञा सब मनुष्यों के लिये है॥12॥
इस तेरहवें सूक्त के अर्थ की अग्नि आदि दिव्य पदार्थों के उपकार लेने के विधान से बारहवें सूक्त के अभिप्राय के साथ संगति जाननी चाहिये॥
यह भी सूक्त सायणाचार्य्य आदि तथा यूरोपदेशवासी विलसन आदि साहबों ने विपरीत ही वर्णन किया है।
यह तेरहवां सूक्त और पचीसवां वर्ग पूरा हुआ॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
12. इन्द्र के लिए यजमान के घर में स्वाहा-द्वारा यज्ञ सम्पन्न करो। उसी यज्ञ में हम देवों को बुलाते हैं।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
12. With Svaha. pay the sacrifice to Indra in the offerer’s house: Thither I call the Deities.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
With Svaha. pay the sacrifice to Indra in the offerer’s house: There I call
the deities.
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
12. Perform the sacrifice conveyed through Svaha to Indra in the house of the worshipper: therefore I call the gods hither.
Svaha,2 as the exclamation used in pouring the oblation on the fire, may also be identified with Agni. In the section on the various Agnis in the Mahabharata Svaha is called the daughter of Brhaspati, the son of Angiras. The Puranas give her a different origin, and make her the daughter of Daksa and wife of Agni.