ऋग्वेदः 1.13.11
अव सृजा वनस्पते देव देवेभ्यो हविः। प्र दातुरस्तु चेतनम्॥11॥
पदपाठ — देवनागरी
अव॑। सृ॒ज॒। व॒न॒स्प॒ते॒। देव॑। दे॒वेभ्यः॑। ह॒विः। प्र। दा॒तुः। अ॒स्तु॒। चेत॑नम्॥ 1.13.11
PADAPAATH — ROMAN
ava | sṛja | vanaspate | deva | devebhyaḥ | haviḥ | pra | dātuḥ | astu |
cetanam
देवता — वनस्पतिः ; छन्द — पिपीलिकामध्यानिचृद्गायत्री;
स्वर — षड्जः;
ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
जो (देव) फल आदि पदार्थों को देनेवाला (वनस्पतिः) वनों के वृक्ष और ओषधि आदि पदार्थों को अधिक वृष्टि के हेतु से पालन करनेवाला (देवेभ्यः) दिव्यगुणों के लिये (हविः) हवन करने योग्य पदार्थों को (अवसृज) उत्पन्न करता है, वह (प्रदातुः) सब पदार्थों की शुद्धि चाहनेवाले विद्वान् जन के (चेतनम्) विज्ञान को उत्पन्न करानेवाला (अस्तु) होता है॥11॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
मनुष्यों ने पृथिवी तथा सब पदार्थ जलमय युक्ति से क्रियाओं में युक्त किये हुएअग्नि से प्रदीप्त होकर रोगों की निर्मूलता से बुद्धि और बल को देने के कारण ज्ञान के बढ़ाने के हेतु होकर दिव्यगुणों का प्रकाश करते हैं॥11॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
11. हे देव वनस्पति! देवों को हव्य समर्पण करो, जिससे हव्यदाता को परम ज्ञान उत्पन्न हो।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
11. God, Sovran of the Wood, present this our oblation to the Gods, And let
the giver be renowned.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
God, Sovran of the Wood, present this our oblation to the gods, And let the
giver be renowned. [11]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
11. Present, divine Vanaspati, our oblation to the gods, and may true knowledge be (the reward) of the giver.
Vanaspati, lord of the woods; usually, a large tree, here said to be an Agni, as if the fuel and the burning of it were identified.