ऋग्वेदः 1.12.9

यो अग्निं देववीतये हविष्माँ आविवासति। तस्मै पावक मृळय॥9॥

पदपाठ — देवनागरी
यः। अ॒ग्निम्। दे॒वऽवी॑तये। ह॒विष्मा॑न्। आ॒ऽविवा॑सति। तस्मै॑। पा॒व॒क॒। मृ॒ळ॒य॒॥ 1.12.9

PADAPAATH — ROMAN
yaḥ | agnim | deva-vītaye | haviṣmān | āvivāsati | tasmai | pāvaka | mṛḷaya

देवता        अग्निः ;       छन्द        गायत्री;       स्वर        षड्जः;      
ऋषि —        मेधातिथिः काण्वः

मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे (पावक) पवित्र करनेवाले ईश्वर ! (यः) जो (हविष्मान्) उत्तम-2 पदार्थ वा कर्म करनेवाला मनुष्य (देववीतये) उत्तम-2 गुण और भोगों की परिपूर्णता के लिये (अग्निम्) सब सुखों को देनेवाले आपको (आविवासति) अच्छी प्रकार सेवन करता है, (तस्मै) उस सेवन करनेवाले मनुष्य को आप (मृडय) सब प्रकार सुखी कीजिये।1।
यह जो (हविष्मान्) उत्तम पदार्थवाला मनुष्य (देववीतये) उत्तम भोगों की प्राप्ति के लिये (अग्निम्) सुख करानेवाले भौतिक अग्नि का (आविवासति) अच्छी प्रकार सेवन करता है, (तस्मै) उसको यह अग्नि (पावक) पवित्र करनेवाला होकर (मृडय) सुखयुक्त करता है।2।॥9॥

भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में श्लेषालंकार है। जो मनुष्य अपने सत्यभाव कर्म और विज्ञान से परमेश्वर का सेवन करते हैं, वे दिव्यगुण पवित्रकर्म और उत्तम-2 सुखों को प्राप्त होते हैं। तथा जिससे यह दिव्य गुणों का प्रकाश करनेवाला अग्नि रचा है, उस अग्नि से मनुष्यों को उत्तम-2 उपकार लेने चाहियें, इस प्रकार ईश्वर का उपदेश है॥9॥

रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
9. जो हव्यदाता देवों के हव्य-भक्षण के लिए अग्नि के पास आकर भली भाँति परिचय करता है, उसको तुम हे पावक! सुखी करो।

Ralph Thomas Hotchkin Griffith
9. Whoso with sacred gift would fain call Agni to the feast of Gods, O Purifier, favour him. 

Translation of Griffith Re-edited  by Tormod Kinnes
Whoso with sacred gift would fain call Agni to the feast of gods, Purifier, favour him. [9]

Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
9. Be propitious, Pavaka, to him, who, presenting oblations for the gratification of the celestials, approaches Agni.

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