ऋग्वेदः 1.12.6
अग्निनाग्निः समिध्यते कविर्गृहपतिर्युवा। हव्यवाड्जुह्वास्यः॥6॥
पदपाठ — देवनागरी
अ॒ग्निना॑। अ॒ग्निः। सम्। इ॒ध्य॒ते॒। क॒विः। गृ॒हऽप॑तिः। युवा॑। ह॒व्य॒ऽवाट्। जु॒हुऽआ॑स्यः॥ 1.12.6
PADAPAATH — ROMAN
agninā | agniḥ | sam | idhyate | kaviḥ | gṛha-patiḥ | yuvā | havya-vāṭ |
juhu-āsyaḥ
देवता — अग्निः ; छन्द — विराड्गायत्री ; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे मनुष्य ! तू (अध्वरे) उपासना करने योग्य व्यवहार में (सत्यधर्माणम्) जिसके धर्म नित्य और सनातन हैं, जो (अमीवचातनम्) अज्ञान आदि दोषों का विनाश करने तथा (कविम्) सबकी बुद्धियों को अपने सर्वज्ञपन से प्राप्त होकर (देवम्) सब सुखों का देनेवाला (अग्निम्) सर्वज्ञ ईश्वर है, उसको (उपस्तुहि) मनुष्यों के समीप प्रकाशित कर।1।
हे मनुष्य ! तू (अध्वरे) करने योग्य यज्ञ में (सत्यधर्माणम्) जो कि अविनाशी गुण और (अमीवचातनम्) ज्वरादि रोगों का विनाश करने तथा (कविम्) सब स्थूल पदार्थों को दिखानेवाला और (देवम्) सब सुखों का दाता (अग्निम्) भौतिक अग्नि है, उसको (उपस्तुहि) सबके समीप सदा प्रकाशित करें।2।॥7॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में श्लेषालंकार है। मनुष्यों को सत्यविद्या से धर्म की प्राप्ति तथा शिल्पविद्या की सिद्धि के लिये ईश्वर और भौतिक अग्नि के गुण अलग-2 प्रकाशित करने चाहियें। जिससे प्राणियों को रोग आदि के विनाश पूर्वक सब सुखों की प्राप्ति यथावत् हो॥7॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
6. अग्नि अग्नि से ही प्रज्वलित होती है। अग्नि मेधावी, गृहरक्षक, हव्यवाहक और जुहू-(घृतपात्र) -मुख हैं।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
6. By Agni Agni is inflamed, Lord of the House, wise, young, who bears The
gift: the ladle is his mouth.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
By Agni Agni is inflamed, Lord of the House, wise, young, who bears The
gift: the ladle is his mouth. [6]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
6. Agni, the ever young and wise, the guardian of the dwelling (of the sacrificer), the bearer of offerings, whose mouth is (the vehicle) of oblations, is kindled by Agni.
The Guardian of the Dwelling- Grhapati, but pati is most usually interpreted by Sayana, palaka, the cherisher or protector; hence it here characterizes Agni as the protector of the house of the Yajamana.4.
Kindled by Agni- That is, the Ahavaniya fire, into which the oblation is poured, is lighted by the application of other fire, whether taken from the household fire or produced by attrition.