ऋग्वेदः 1.12.3
अग्ने देवाँ इहा वह जज्ञानो वृक्तबर्हिषे। असि होता न ईड्यः॥3॥
पदपाठ — देवनागरी
अग्ने॑। दे॒वान्। इ॒ह। आ। व॒ह॒। ज॒ज्ञा॒नः। वृ॒क्तऽब॑र्हिषे। असि॑। होता॑। नः॒। ईड्यः॑॥ 1.12.3
PADAPAATH — ROMAN
agne | devān | iha | ā | vaha | jajñānaḥ | vṛkta-barhiṣe | asi | hotā | naḥ
| īḍyaḥ
देवता — अग्निः ; छन्द — निचृद्गायत्री ; स्वर — षड्जः;
ऋषि — मेधातिथिः काण्वः
मन्त्रार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
हे (अग्ने) स्तुति करने योग्य जगदीश्वर ! जो आप (इह) इस स्थान में (जज्ञानः) प्रकट कराने वा (होता) हवन किये हुए पदार्थों को ग्रहण करने तथा (ईड्यः) खोज करने योग्य (असि) हैं, सो (नः) हम लोग और (वृक्तवर्हिषे) अन्तरिक्ष में होम के पदार्थों को प्राप्त करनेवाले विद्वान् के लिये (देवान्) दिव्यगुण युक्त पदार्थों को (आवह) अच्छे प्रकार प्राप्तकीजिये।1।
जो (होता) हवन किये हुए पदार्थों का ग्रहण करने तथा (जज्ञानः) उनकी उत्पत्ति करानेवाला(अग्ने) भौतिक अग्नि (वृक्तवर्हिषे) जिसके द्वारा होम करने योग्य पदार्थ अन्तरिक्ष में पहुँचाये जाते हैं, वह उस ॠत्विज के लिये (इह) इस स्थान में (देवान्) दिव्यगुणयुक्त पदार्थों को (आवह) सब प्रकार से प्राप्त करता है। इस कारण (नः) हम लोगों को वह (ईड्यः) खोज करने योग्य (असि) होता है।2।॥3॥
भावार्थ — महर्षि दयानन्द सरस्वती
इस मन्त्र में श्लेषालंकार है। हे मनुष्य लोगो ! जिस प्रत्यक्ष अग्नि में सुगन्धि आदि गुणयुक्त पदार्थों का होम किया करते हैं, जो उन पदार्थों के साथ अन्तरिक्ष में ठहरनेवाले वायु और मेघ के जल को शुद्ध करके इस संसार में दिव्य सुख उत्पन्न करता है, इस कारण हम लोगों को इस अग्नि के गुणों का खोज करना चाहिये, यह ईश्वर की आज्ञा सबको अवश्य माननी योग्य है॥3॥
रामगोविन्द त्रिवेदी (सायण भाष्य के आधार पर)
3. हे काष्ठोत्पन्न अग्नि! छिन्न-कुशोंवाले यज्ञ में देवों को बुलाओ। तुम हमारे स्तोत्र-पात्र और देवों को बुलानेवाले हो।
Ralph Thomas Hotchkin Griffith
3. Bring the Gods hither, Agni, born for him who strews the sacred grass:
Thou art our herald, meet for praise.
Translation of Griffith
Re-edited by Tormod Kinnes
Bring the gods here, Agni, born for him who strews the sacred grass: You
are our herald, meet for praise. [3]
Horace Hayman Wilson (On the basis of Sayana)
3. Agni, generated (by attrition), bring hither the gods to the clipped sacred grass; you are their invoker for us, and are to be adored.
Generated- The original has only jajnanah,3. ‘being born’, that is, being artificially produced by the friction of two pieces of a particular species of wood, that of the Premna spinosa, used for the purpose.